एक चिथड़ा सुख | Ek Chithda Sukh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
5 MB
कुल पृष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शरीर में कंपकंपी-सी दोड रही थी । खिडकी के झीशो पर पानी वह रहा था, भूरा
झौर मटियाला; उसे याद झाया, बहुत दिन पहले उसने ऐसा ही पानी देखा था ।
वे बारिश में भोग रहे थे, भीगते हुए भाग रहे थे। दुकानों की रोशनियाँ गेंदसे
चहृवच्चों में चमक रही थी। वे शुरू-शुरू के दिन थे ।
“ वह इलाहाबाद से आया था । ड्रामे के रिहसंल पअ्रभी शुरू नही हुए थे और
विट्टी खाली थी । वे सारा दित घूमते रहते थे --कुतुव और जामा मस्जिद, हुमायूँ
का मकबरा और पुराने किले में वह जीना भी, जहाँ हुमायूँ बादशाह गिरे थे।
बिट्टी और उसके दोस्त उसे हर जगह ले जाते ये ।
लेकिन उस दिन वे कही न जा सके । कवॉट प्लेस पहुंचते ही बारिश गिरने
लगी; सदियों की सफेद और महीन भड़ी, जिसे वे दोनों गलियारे से देख रहे ये ।
बिट्टी ने एक लम्बा, ब्राउन स्वेटर पहन रखा था, गले में काला मफलर लिपटा
था**'कन्धे पर चमडें का यला था, जिसमें उसने दिल्ली का नक्शा दूँस रफ़ा घा।
बह हमेशा नवशा लेकर बाहर निकलती थी।
श्रेघेरा होने लगा, तो वारिश झोभल हो गयी। सिर्फ लैम्पपोस्ट की रोशनी
में पता चलता था कि बूंदें अब भी भर रही हैं ।
वे भ्रोडियन सिनेमा के पीछे चले झ्राये । वहाँ बहुत-से रेस्तरां प्रौर ढावे थे।
फुटपाथ पर मेज़ें लगी थी। हवा में एक तीखी गन्ध उठ रही थी, जिसमे गीली
मिट्टी भौर मुतते मास का मिला-जुला स्वाद चिपका था।
अचानक विट्टी ने उसका हाथ खीच लिया।
“खाना खाप्ोगे २”
“कहाँ ?”
“यही,” बिट्टी ने कहा, ' देखो, कितने लोग बैठे हैं ।
मन में हिचक हुई, इस फुटपाथ पर ? लेकिन बारिश रुक गयी थी, दिन-भर
घूमते रहने के कारंण वह निढाल-सा हो गया था। अगर विट्टी वहाँ बंठ सकती
है, तो वह भी बैठ राकता है।
बे एक खाली मेज के पास चले झाये । फुटपाथ के नीचे वारिण का पानी वह
रहा था, जिसमें खाने की जूठन, पतलें श्ौर श्रखवबार के कागज एक-दूप्तरे का
पोछा कर रहे थे-- लेकिन खाने मे जुटे लोग उसे नही देख रहे ये।
>ब्िट्टी भी कही भौर देख रही थी। बीच सडक पर कोई मोदर ब्राती, तो
उसकी हैडलाइट का घूमता हुआ दायरा उसके चेहरे पर थिर हो जाता ““वह
शायद श्रपनी गलती महयूस कर रही थी, पेकिन वेटर पहले ही झार्डर लेकर जा
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