भैरवी | Bhairavi

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Bhairavi by पं. सोहनलाल द्विवेदी - Pt. Sohanlal Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चार बढ़ते ही. जाते. दिग्विजयी' ! गढ़ते तुम श्रपना. रामराज, श्रात्माहुति के मणिमाणिक से मढ़ते जननी... का. स्वर्णताज ! तुम कालचक्र के रक्त सने दशनों के कर से पकड़ सुद्दढ़, मानव के दानव के मुँह से ला रहे खींच बाहर बढ़ बढ़; पिसती कराहती जगती के प्राणी में भरते श्रभय दान, श्रघमरे . देखते. हैं तुमके, किसने श्राकर यह किया न्नाण ? दृढ़ चरण, सुद्दढ़ करसंपुट से ठुम कालचक्र की चाल रोक; _ नित. महाकाल की छाती पर लिखते करुणा के पुण्य श्लोक |! केपता . श्रसत्य, . कैंपती मिथ्या, बर्बरता . कैंपती.. है. थरथर ! केंपते. .. सिंहासन, .... राजसुकुट केपते, खिसके आते भू पर,




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