भैरवी | Bhairavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
21.8 MB
कुल पृष्ठ :
165
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चार
बढ़ते ही. जाते. दिग्विजयी' !
गढ़ते तुम श्रपना. रामराज,
श्रात्माहुति के मणिमाणिक से
मढ़ते जननी... का. स्वर्णताज !
तुम कालचक्र के रक्त सने
दशनों के कर से पकड़ सुद्दढ़,
मानव के दानव के मुँह से
ला रहे खींच बाहर बढ़ बढ़;
पिसती कराहती जगती के
प्राणी में भरते श्रभय दान,
श्रघमरे . देखते. हैं तुमके,
किसने श्राकर यह किया न्नाण ?
दृढ़ चरण, सुद्दढ़ करसंपुट से
ठुम कालचक्र की चाल रोक;
_ नित. महाकाल की छाती पर
लिखते करुणा के पुण्य श्लोक |!
केपता . श्रसत्य, . कैंपती मिथ्या,
बर्बरता . कैंपती.. है. थरथर !
केंपते. .. सिंहासन, .... राजसुकुट
केपते, खिसके आते भू पर,
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