नसीब अपना अपना | Nasib Apna Apna

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Nasib Apna Apna by विमल मित्र - Vimal Mitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नसीव : अपना-अपना | है जव उसकी सुनायी कहानी मेरी कलम से निकलकर पृस्तक के रूप में प्रकाशित होती है तव उसे पढ़कर वह कहता है--“'यह क्या किया आपने ? यह ठीक नहीं हुआ । मैंने जसा कहा था, आपको वैसा लिखना चाहिए था । इस तरह आपने बदल क्यों दिया ? भा इसे लोग खरीदेंगे ?'' में कहता--“न खरीदें । मैंने जो अच्छा समझा, वहीं लिखा । इस सम्वन्घ में तुम्ट कुछ नहीं कहना चाहिए। अगर बदनामी होगी तो मेरी होगी, तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा ।”' हरिपद कहता --“वात सही कह रहे हैं, पर लोग व्या कहेंगे ?'”' में पुछता---“लोग क्या कहेंगे ? क्या मतलय ?”' हरिपद कहता--“वाह, लोगों को तो यह मालूम है कि भाप मुझसे कहानियाँ खरीदने हूं ।'' क्या मतलव ? लोगों को केसे मालूम हो गया कि मैं तुमसे कहानियाँ खरीदता हैं ?” दरिपद कहता--''मैंने लोगों को यही बताया है ।”' में नाराज हो उठता । कहता--“'क्या इस चात का कोई प्रमाण दे सकते हो कि मैं तुमसे कहानियाँ खरीदता हूं ?”' सचमुच इस वात का प्रमाण कहीं भी नहीं है। मैं नकद रुपये हरि- पद को देता हूं, उसके वदले वह मुझे कोई रसीद नहीं देता । कहानियाँ खरीदने के सम्बन्ध में में भी उसे कोई रसीद नहीं देता । केवल इसी वात को छेकर आपस में जरा मतान्तर होता है, मना- न्तर भी हो जाता है । हरिपद क्रोध में आकर कहता --“'ठीक है सर, अब आगे से आपको कोई कहानी नहीं वेचूंगा ।”' में कहता--“नहीं वेचना चाहते तो मत वेचो । इससे मेरा कोई नुकसान नहीं होगा । बाजार में काफी कह्ानी-सप्लायर हैं। मैं उन लोगों से कहानिर्या खरीदँगा । दाना छींटने पर चिड़ियों की कमी नहीं दहोगी- - इसे जान लो ।'' हरिपद भी नाराज होकर कहता- “ठीक है सर, अगर आप यही चाहते हैं तो उन्हीं लोगों से कहानी खरीदिये । मुझे कोई एतराज नहीं है। में आपके वदले शिवशंकर वायू को कहानी सप्लाई करूँगा | चे मु कहानी पीछे एक सौ रुपये देने को कहते हूं ।” के न्थ में कहता-*“'ठीक है, तुम उन्हें दे सकते हो ।”




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