विश्वकोश खण्ड 18 | Vishwakosh Part 18

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Vishwakosh Part 18 by नगेन्द्र नाथ वाशु - Nagendra Nath Vashuनागरीप्रचारिणी सभा - Nagari Pracharini Sabha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुद्ठा मंध्यमा और अनामिका इन अं गुलियोंकों सीधी तरहसे मिला दो । यह मुद्रा शड्ूस्थापनके समय शड्ुके ऊपर चालित की जाती है। कुम्ममुद्री-दाहने हाथके अगूठेको वाये दाथके अ गूठेसे वांध कर दोनों हार्थोकी | मुद्दी वांघ छो । इस मुट्टीके भीतर कुछ पोख रखनों | चाहिए । इसका प्रकारान्तर--दोनों हार्थोंकी मुद्रियाँ वाँध कर दोनों अयूठोंको ऊद्ध्वमुख तर्जनियोंके अम्र- सागमें रखनेसे भी कुम्ममुद्दा होती है। प्रार्थनामुद्रा-- दोनों हार्थोको सामने रख कर समस्त अशुल्ियोंक्रो परस्पर मिला कर अपने हृदय पर रखो । अझलि- मुद्दा- दाथो से दनाना । इस मुद्राको किसी-किसीने । वाखुदेवाख्यमुद्रा भी कहा हैं। क्ाठकर्णीसुद्रा--दोनों हाथो को मुद्दी वांध कर सामने रखो और दोनो अ गूठों । को ऊँचा उठा कर संलग्न करो । । विस्मयमुद्रा--दांहने हाथसे टरढ़रुपसे मुद्रावन्धन पूर्वक उसी हाथकी तजोनी नासिकाके आगे रखो । नादमुद्रा-- दाहने हाथके अगूठेकों ऊंचा उठा कर मुद्रा वांधों । विन्दुमुद्रा--दाहने हाथसे मुद्रावन्धन करके अ गूठे और तर्जनीका पररुपर संयोजन करो ।. संहारमुद्रा--वाये हाथकों अधोमुख और दायेंको ऊदु्ध्वमुल् रख कर दोनों । हथींकी अ गुक्ियोंकों परस्पर श्रथित करके हाथ बदलों 1 यह मुद्दां विसर्जन -कायमें प्रयुक्त दोती है। मत्स्थमुद्रा-- दाहिने हाथकों अधोसुख रख कर उसकी पीठ पर वाई हथेछी रखों और दोनों अगूठोंको परिचालित करो कगमुद्रा--वाये दाथको तर्ज नीमें दाये हाथक्री कनिष्टा और दाये हाथकी तजनोमें वाये हाथका अ गूठा मिला कर दाहने हाथके अंशूठेको ऊ चा करके रखना तथा वाधे हाथको अनामिक्ा और मध्यमाकों दाये दाथकी पीठ पर रखो । फिर बायें हाथके पिंतुतीथे पर अर्थात्‌ तजेनी भीर से गूठेके मध्य भागमें दाये हाथदो मध्यमा और अनामिकाकों अधोमुख मिला कर दाये ाथकों | पीठ पर कूर्मप्रष्ठकी तरह उन्नमन करो । यह देवताके ध्यानमें प्रयुक्त दोतो है।. सुण्डसुद्वा--वायें हाथकी मुट्ठी वांध कर उसके भोत्तर वामागु प्व॒ घुसा दो पीछे दायें हाथेकी मध्यमाके साघार पर तर्जनी आदि अं गु- लियोंको परस्पर मिलानके वाद बाम म्‌द्रामें संयुक्त करने दक्षिण भायोंमें प्रदर्शन कराओ | 9 अए311 ६ श्ट योनि भरूतिनी और वीजमुदाका उल्लेख पहले किया जा चुका है। अब तारादेवोंकी अस्यास्य सुद्रायें चतलाई जाती हैं।. घूमनीमुद्दा--दोनों हा्थोको सुपष्टरुपसे परि- बर्तन करके दोनों कनिछ्राओंके द्वारा दोनों मध्यमाओंको आकर्षण और वादृमें दोनों अनामिकामोंकों परथक प्रथक अधोमुख रख कर परस्परकों निदिड़ भांवसे वांध कर अंयूठाके अग्रमागमें अनामिकाकों मिला दो। यह मुद्दा साघककों भव-वन्घनसे मुक्त करती है । लेखिहान- मुद्रा-मुख विछृत करके अधोपुख जिह्ाकों परिचाठन करना और दोनों हार्थोकी मुद्दा दोनों ओर स्थांपन करना । यह मुद्रा तारादेदीकी आराघधनाके लिए प्रशस्त है । पह्टींए खोंह इन पंच वीज्ञॉंकी उद्चारण करने तारादेवीकी पश्च मुद्रा वांधनो चाहिए ।. प्रकारान्तरसे वर्जनी मध्यम और अनामिकाकों समान भावसे अधो- मुख रख कर अनामिकामें अयूठेको रखना और कनिष्ठा- को सीधी रखना । इस मुद्राका प्रयोग जोवन्यासमें होता है ।. महायोनिमुद्रा--दाये हाथकी तर्जनीके साथ वायें हाथकी तज्ञनी. इसी तरह मध्यमास मध्यमा अनामिकासे अनामिका और कनिप्रासे कनिछ्ठा मिला कर दोनों करनिप्राओंके मुख्में अ गूठा मिछाना । इसके सिवा चामकेश्वरतन्त्में थो मुद्दादों और उनके लक्षण दिये गये हैं । इन सब मुद्रा-रचनाओंसे लिंयुरादेवीका सान्निध्य होता है । तन्त्रसारोक्त मुद्दा- प्रकरण कह चुके । अब देखना चाहिए कि अन्यत्र खुदा सम्बन्धमें क्या लिखा है। _ घेरण्डसंहिताके तुतीय उपदेशमें पद्चीस सिद्धिदायिनों मुद्रा उनके खुक्षण गौर फरछोंका बर्णन किया गया है | उक्त मुद्राए योगाम्यासरत व्यक्तियॉंके छिप बहुत ही शुमकर हैं। योगपरायण साधु पुरूप इन सुद्राओंका यथायथ भावसे अचुछ्ान करे तो सर्वप्रकार आधिव्याधि- हाथसे उन्हे छुटकारा मिठ सकता हैं और वे खुदुलभ सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं । नीचे उन मुद्राओँका चर्णन दिया ज्ञाता है | सुद्दालोंके नाम--महासुद्रा नभोमुद्रा उड्टीयान जलस्घर मूठवन्ध मददावन्ध महावेध खेचरी विपसीत- करी योनि वज्चिणी शक्तिचाछिनी ताड़ागी मार्डवो




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