धरनी दास जी की बानी | Dharnee Das Ji Ki Bani

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Dharnee Das Ji Ki Bani by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खिताघनी गे लीला श्र जना चारि श्गये वहाँ ते उठाये । घ्यणिन में जराये नदी में बहाये ॥४०॥ पिन्‍्हाये कफन खादि खादे गड़ाये । दीवान साहब सलामत को श्ाये ॥४९॥ प्रयोधो न पाँचो बहुत नाच नाचे । कला खेलि खाली चले इन्द्रजालो& ॥४२॥ उद्ाँ घर्मेराया चितरगुप्र छाया । जहाँ पत्र देखा सुकत की न रेखा ॥४ ३॥ नहीं नाम गाया नहीं जीव दाया । भगति की न भेवा नहीं साथ सेवा ॥४४॥४ जुस्त जन्म हारे बे गुरु के बिचारे । भुलाने झनारो परो बीचि भारी ॥४४॥ गये यहि प्रकारा कितेका भुवारा1 । शवर जा बेचारा करे का ससारा ॥9६॥ गये कौरवों श्ौर सिसुपालु रावन गये छप्पनो काटि जादव कहाबन ॥४७॥ गये चक्ठुवे चक्रबतों कहाये । गये मंडली कोाउ संदेखे न पाये ॥9४८॥ गये साकबंधी सका बाँघचि केते । ते साठी सिले बीर बलवान जेतेत. ॥9९॥ # काम क्रोध श्रादिक पाँच टूत के सका नहीं घल्कि इस्टीं का नाच नाखते थे से मरने पर पऐसाही इश्ना जैसे कि इस्ट्रजालवाला तमाशा कर के लल देता है। 1 भुवाल--राज़ा। पु ऐसे राजा जिन का शाक खत्ता है और शूर बीर धूल में मिल गये ।




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