श्री भक्ति रस विन्दु : | Sri Bhakti Ras Vindu :

Sri Bhakti Ras Vindu : by दुर्गाप्रसादात्माज सीताराम - Durgaprasadatmaj Seetaram

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दुर्गाप्रसादात्माज सीताराम - Durgaprasadatmaj Seetaram

Add Infomation AboutDurgaprasadatmaj Seetaram

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(१७१ लि मर सदगुरु ॥ ८ ॥ शड़ा तट पर दयावान इक परमहंस यति प्यारे हैं । वजित चिन्ता रहित वासना जग कश्मल ते न्यारे हैं| शान्त करुण है दृष्टि उन्हों की परम पण उनका मुख है । सदा त्रह्मविद्या में रति है उसमें यतिवर का सख है ॥२। सब समान धनी निधन में आदर उनका रहता है । सत्‌ की उज्वल प्रतिमा हैं यह दर्शन उनका कहता है॥३॥। संतोष प्रिंता माता है शम झरू भगनी प्रज्ञा है उनकी । प्रिय पत्नी है क्षमां सहन यदद दशा पतित्र शुभजीवनकी।। ४ यद्यपि बुद्धिमान अरु प्रणिडित ज्ञान धर्म की शिक्षा में । तद्यपि जीवन सहज उन्हों का द्वार द्वार रति मिक्षा में॥४॥| घन की तु्षां विहीन वह स्वामी दूर नाम की प्यासा से । रोग हीन अरु सुखी देह है दुखी नहीं यश आशा से।।६॥। बड़े बड़े समाट शासना भीति युक्त जन मन करते ) वह प्रिय शब्द निष्कपट कहकर दशेकका तन मन हरते॥ ७ सब मनज उनके बालक हैं सारा जग उनही का है| अहडर झरु इच्छाओं से रहित राज्य उनही का है ॥ ८1) दिव्य दृष्टि से पूर्ण उन्हें निज स्वरूप आत्मा है साक्षादू। जीवन क्षण सुख युक्त बिताते निज महिमा लीलामें तात)।&




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now