हिंदी विश्व कोष भाग 24 | Hindi Vishvkosh Bhag 24

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Hindi Vishvkosh Bhag 24 by नगेन्द्र नाथ वाशु - Nagendra Nath Vashu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साघ--सानन्दनी यद्धिरी घ्याप्तिको कई सनि ने ये होती । सैद्धिकोंकी सापा्ें साध्यामाय वहनेसे इसी तरद के झर्चेशों प्रनोति होता दी । ्याह्तिर लक्षणों साध्या माधयरद नटय ही ब्यासि हो । इस ब्पातिका लक्षण करने पर प्रस्येक परबरदो अचन््धिन अवच्छोदकता फर डअल्पप पर्यतमों उक्त दा तादके अमाव रतमे पर मी घूममें | पर । सति दुर्नोध्य हो जाती दो ।. घिषपय यढ सानेस मयसे शधिस्यालेा ना न वीं गई। सच (स० कोन । साममेद |. ( प्रिशन इपाए २८ ) माध्ययर्य ( से ० लिव् ) सतिशद अनुसक्त पिश्यस्त 1 साध्यस ( स ० दो ) सापु बस भू ।. १ भय वास दर २प्रतभा। ३प्याकुलता घवराइट | ४ मणि काहुरिशीप। ( साइल्पद० धा+५द ) साध्याचार (स०्पु. ) साघूनामा रा । रू साघुत्रो का सा थाचार। ? शिष्टाचार। (जि ) ३ साधघुओं- का गानारप्ि धिए उत्तत आसरणपालो सध्यी ( स४ ख्रा०्) सचघुडोप। १ पतिप्नता स्त्रीय | जा खो स्वामीक दु व्िंत होने पर दु पिन हुए दोने पर अनिल मो व अधासू दिदेश जाने पर मलित सर | छग नथा स्वामी सुर्यु पर अजुद्धुत होती है उसो दे | साध्वी पहने द। सध्यो खों बल पतिसेत्रा द्वारा दी | इहशाउयें सुख सीर परकल्मे सवगलास करनो है । | बिना स्तर मो हो भनुनलिक उतर लिये कोई पूरक यश घन उपय सादि कुड मी पदों दे । यदि किया घाव दिन | का सनुप्नान करना हो ते स्पामोशो भनुमति ले कर बरे | स्वाघोनमायम त्रिसा कर्मशा उ दे अधिकार नहं हैं। साध्यो खाक चाहिये दि. स्यामा जोधित रह था नद्दीं पतिलश्कामो हो कर नमी उसका प्रिया चरण नकरे | पतिके मरा पर पतियका छोड़ वे पर पुरा नामोदय रण नहीं कर सश्ती । सब तक अपना मद्ण मे हों तव तक ये कॉशसरिष्णु सींर निपमदारों पु दोवर मु मास मधुना दे घर्डानस्ा धघ्द्दाशा अब एश्वन करे | साध्या यो सादे जिस सपस्थाम धदो न रत सब दा घर मन में अपना समय वितायें 1 डन्दे | यूर्बब मे दस तथा गुरसामधरिपाका पारिप्द्त -झीर परि चिदान इयना हथा य्यपविपररर्म सदा झमुक्त इस्म दाना १ ५1६ ढ श्द उचित है। पिंता यां पिवाफीं रज्ुपतिके थनुसर लाता ने जिसे दान वर दिया हैं उस सयामोरें ज्ञोपितकार पर्थत उसको सुदूपा तथा उसकी सुत्युरू वाद दपमि- चारादि द्वार उसका उल्सटुन ने धरना साध्यों ख्रारा अवश्य कर्चव्य है। स्वापिपरतन्त्रता दो उपका एकमसात कर्म है (मनु० ५ गण ) २ दुग्घपाधाण । ३ मेंदा लामक सएय्रगाय ओपथि (बि०) ४ शुद चरिनयारों सचरिल्ा। साध्यीक (से त्रि० सतिशप साध्या | सान ( दि ० पुन) चद पटयरशों चको जिस पर अस्टारि तेज किये ज्ञात है शाण कुर 1 सापना (दि ० नि) ३१ दो चम्तुमो को मौपसर्म मिलाना गू घना. २ सम्तिलित करना शामिठ वरना | 3 मिराना उपेटना । सापन्फमार ( से ० दि ) सनतकुमारसम्दसघोय सनसू- वुम्ारप्रोत उपकरण | सानत्सुवात | स ० ति० ) जिसमें सपत्सुन्ानका उपा स्पान हा 1 सामन्द (सौ० पुर ) आनन्देस सद चराते इति । १ सद्गीत मतसे १६ घ्ुयकेक अतर्मैतर द्युयक भेद । (सम ददामदर) चीररस मीर वबदस्इसूछ रतान अटादूग अक्षर द्वारा गुना यम सीर दप्रदानकारों घडयकका सतनन्द कहते दै। २ गुयहरख । ३. सम्पशातमसमा घ पिश्ष | सपितर्क सर्विचार से नत्दूं गीर सास्मित सेदस चार ध्रकॉएका समाधि है । आनन्द शारदा सर्स मॉहुनाद है। इन्ड्पाव अदटूरस उपाय इन्टियां हीं गानन्द नामसे बब्िदित हातों हैं। इन इद्रियाका मचछग्वन कर नित्तदूत्ता घारारुपस जो समाधि तो है चद्दो सानन्द समाधि दै। इस समा/घब है ज्ञात पर यह न. समसना चादिये वि. समा घका डर दे गया | इस समाधिमें सततुप्ट रदो प छ उसको पुन रुतपत्ति दाता 1 समाधि ब्दमे इसका वि प दियग्एा दूर 1 (दि) ४ सटादयुल सानादविशष्ट थानम्दूक साध 1 सानन्दनो ( स ० स्थल 9 सड़मेद |




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