पाप और प्रकाश | Pap Aur Prakash

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Pap Aur Prakash by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाप और प्रकाश थी तूलेलेगीतोतूलेले। नहीं तो बूढ़े घनपत की वह जग्गों है ही उसे दे दूंगी | सोना--दैया री कहीं उससे कुछ बात न निकले । मुझे डर लगता है । कुसलो --बात केसी मेरी भोली बहू १ तुम्हारा मरद तन्दुरुस्त और दिलदार होता तो बात दूसरी थी । पर झ्ब तो वह न सुर्दों में हे न जीतों सें | इस दुनिया मैं वह किस काम का है १ ऐसा तो श्रक्सर होता है । सोना--उद्द मेरा तो तिर घूम रहा है । डरती हूँ कि कहीं उसमें कुछ बुराइं न निकले । नहीं नहीं यह नहीं-- कुसलो--तेरी जैसी मरजी बहू मैं वापस कर दूंगी | सोना--तो यह पुड़िया भी पहली तरह दी जायगी--पानी मैं ? कुसलो--बोलता था कि चाय मैं दो तो श्रौर श्रच्छा । कहा कुछ पकड़ नहीं न निशान न गन्घ न कुछ । वह सिद्ध श्रादमी है । सोना-- पुढ़िया लेकर ऊ-ऊर-रे सिर फटा जा रहा है । जिन्दगी मेरी नरक न बन गई होती तो भला मैं ऐसा सोचती कुसलो--श्रौर कीमत एक रुपया है मला । रुपया जाके देना भी है । वह भी विचारा ददाथ का तंग है । सुना सोना--दाँ-अँ जाती है श्रौर पुढ़िया बक्‍्स के झन्द्र छिपा देती है कुसलो--श्रच्छा तो मेरी हीरा बहू बात यह श्रपने तक दबी रखना । भूठें कान किसी को खबर न दो । राम न करे जो कहीं कोई देख दीले तो कह देना कि चूहों के लिए दवाई है । दृश्य में रुपया सैँभालती है चूहों के काम भी आती हे यदद दवाई रुक जाती है रिस्रान्न झाता है और सामने किसन जी की सूरत टंगी देखकर हाथ जोड़ता है । तभी जोघराम आता है और बेठ जाता है । जोघराम--हाँ रिसाल चौधरी कहो कैसा कया हे रिसाल--जोघ दादा कया नाम बाजबी बात है बाजबी। पूछो क्यों ? श्य




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