भारत - भारती अतीत खंड | Bharat Bharati Atit Khand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
4.19 MB
कुल पृष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अतीत खण्ड १५
ख्री ने कद्दा सर्योदय ही न होगा ! उसके पातिय्रत घर्म के प्रभाव से
हुआ मी ऐसा ही | सूर्यय का उदय दोना रुक गया । इससे यढ़ी इलचल
मच गई । अन्त में अनसूया देवी ने उसे समझा घुझाकर सय्यं का
उदय करवाया । सूयोदय होते ही फषि का झाप फलीसूत हुआ, बढ
ब्रासण मर गया । किंन्द जनदया ने अपने प्रमाव से उसे पिर जिला
दिया और उसे नीरोग भी कर दिया ।
( ख) एक योगी चन में यूक्ष के नीचे येठा था । सदसा दो कौर्चो
ने उसी दक्ष पर काँव काँव मचाकर उसे प्रुद्ध कर दिया । उर्यो हो उसने
अपनी तीकष्ण दृष्टि ऊपर की ओर डाली, स्यों दी वे दोनों पक्षी मरकर
नीचे गिर पड़े । अपना ऐसा प्रमाव देखकर योगी को गर्व हुआ । एफ
चार उसी योगी ने किसी गाँव में लाकर एक ग्दस्प के द्वार फ्र भिक्षा के
लिए आवाज दी । भीतर से ख्री-कंढ से उत्तर मिला, “जरा देर ठदरो”
योगी ने कद्दा--हैं, यद अमा गिनी स्री मुझे ठ्दरने को कदती है, मेरे
योग्य फो नहीं जानती ! अभी चह्द यद सोच ही रद था कि अन्दर से
फिर जावान आाई--'येटे, बहुत फ्रोघ मत कर, यहाँ फीए महीं रदते ।”
अजय तो योगी फके आधे का ठिकाना न रद्द । ररी फे याएर आने पर
वह उसके पेरों पर गिर पढ़ा और एूएने लगा कि मां तूने यए सब कैसे
जाना ! हरी ने फददा,-'मैं एफ साधारण सी हूँ; किन्द॒ मैंने इमेशा अपने
धर्म का पालन किया है | अमी जय मैंने वर्ग ठदरने को फद्दा था तय मैं
अपने रुग्ण पति की सेवा में लगी हुई थी । पतिऐया ही सेस धर्म है ।
सपने धर्म्म फा पालन करने से मेरा टृदय इतना निर्मछ होगया है दि
उसमें सब बातें प्रतिदिश्यित हो जाती हैं । यदि नुग्द्ें इससे लिया सन!
फी इच्छा ऐ तो अमुर व्याप के पास डाओ 1” उस ररी के उपदेशानुरार
यए योगी उस स्याप के पास गया बर ब्याष ने उसे सनेक सारग्मित
उपदेश दिये । द््टी उपदेश “स््यापगीता” के माम से प्रॉटद् हैं ।
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