हिंदी काव्य | Hindi Kavya

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Hindi Kavya by श्रीमती गायत्री देवी - Srimati Gayatri Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७ ) में कवित्त सवैये । इनमें प्रेम श्रौर स्व गार का अधिक है । प्रेस की अनुभूति जितने रसपूरण दाव्दों में रसखान ने की है वेसी हिन्दी में बहुत कम पाई जाती है । इनके भाव वड़े ही उदात्त श्रौर भाष। सरल हैं । तन्मयता इनकी कविता का विशेष गुण है । ४--भूषण भूषण का जन्म संवत्‌ १६९९ में कानपुर मण्डल के तिंकवांपुर ग्राम में हुआ था । ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे श्रौर इनके पिता का नाम रत्नाकर था । भूषण चार भाई थे--चिन्तामरिण, भूषण, मतिराम श्रौर नीलकण्ठ (जटादख्ूर) । ये चारों भाई सुकवि थे। चिन्तामरिण . श्रौरंगजेब के दरवारी कवि थे । कहते है कि भूषण प्रारम्भ से बड़े श्रालसी थे, खाना आर सोना यही इनकी दिनचर्या थी । एक दिन भोजन के समय दाल में नमक कम होने पर इन्होंने श्रपनी भावज से नमक मांगा तो उसने ताना मारते हुए कहा--'हां बहुत सा नमक कमा कर लाए हो न जो उठा लाऊं । भूषण यह व्यंग्योक्ति न सह सके श्रौर तत्काल ही भोजन छोड़ कर उठ कर खड़े हुए श्रौर बोले कि श्रब जव हम नमक कमा कर लायेंगे तभी यहाँ भोजन करेंगे । ऐसा कह रुष्ट होकर घर से निकल पड़ें श्रौर वड़े परिश्रम से विद्याध्ययन करने लगे । थोड़े ही समय में इन्हें कविता करने का अच्छा श्रभ्यास हो गया श्रौर यह चित्रकुटाधिपति हृदयराम सोलंकी के पु रुद्रराम के श्राप्मय में रहकर वीररस की कविता करने लगे । इनकी प्रतिभा श्रौर चमत्कारिक कविताध्रों से प्रसन्न होकर रुद्रराम ने इन्हें कवि भूषरा की उपाधि दी । तभी से यह इसो नाम से प्रसिद्ध हो गये श्रौर इनके वास्तविक नाम का पता भी न रहा। कुछ समय पर्चातु यह भ्रौरंगजेब के दरवार में पहुँचे ग्रौर भाई की सहायता से वहाँ




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