कुछ विचार | Kuch Vichar

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Kuch Vichar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ ४ : : कुछ विचार 2 : उसके ठ्यंग्य विद्र प की स्थायी सामग्री थी । वह भी मजुष्य है; उसके भी हृदय है और उसमे भी आकां्राए है,--यह का की कल्पना के बाहर की बात थी | कला नाम था और अब भी है; संकुचित रूप-पूजा का; शब्द- योजना का, भाव-निबंधन का । उसके छिए कोई आदर नही' हे; जीवन का कोई ऊँचा उद्देरय नहीं हे:--भक्ति; वेराग्य, अध्यात्म और दुनिया से किनाराकशी उसकी सबसे उची कल्पनाएँ हैं । हमारे उस कछाकार के विचार से जीवन का चरम लक्ष्य यही है । उसकी हृष्टि अभी इतनी व्यापक नही कि जीवन-संप्राम मे सोन्दय का परभोत्क्प देखे । उपवास और नग्ता में भी सौन्द्य का; अस्तित्व संभव है; इसे कदाचित्‌ वह स्वीकार नहीं' करता। उसके लिए सौन्दय सुन्दर स्त्री हे,-- उस वच्चोवाढी ऱारीव रूप-रहित ख्री मे नही जो बच्चे को खेत की सेंड पर सुलाये पसीना चुहदा रही है , उसने निश्चय कर छिया हे कि रेंगे होठो; कपोलों और भोहो मे निस्सन्देह सुन्दरता का वास है--उसके उठे हुए बालो, पपड़ियोँ पड़े हुए होठों और कुम्दलाये हुए गालो से सौन्दय का प्रवेंग कहां ? « पर यह संकीण-हृष्टि का दोप है । अगर उसकी सौन्दर्य देखनेवाछी चष्टि से विस्वृति आ जाय तो वद्द देखेगा कि रेंगे होठों आर कपोलो की आड़ मे अगर रूप-गब और निष्ठरता छिपी हे; तो इन मुरझाये हुए होठों ओर कुम्हछाये हुए गालों के ऑसओ में त्याग: श्रद्धा ओर कष्ट- सहिष्णुता हूँ । दो, उसमें सफासत नहीं, टिखावा नहीं, सकुमारता नहीं | दमारी कला यौवन के प्र स में पागछ है ओर यह नही जानती कि जवानी छाती पर हाथ रखकर कविता पढ़ने, नायिका की निप्ठुरता ख़रता का रोसा रोने या उसके रूप-गव ओर चोचछो पर सिर धघनने में नहीं है । जवानी नाम है आदगवाद का, हिम्मत का, कठिनाई से मिलने की इच्छा का; आत्म-त्याग का । उसे तो इकचाल के साध कहना होगा-- अज़ दस्त ,जुनूने मन जिश्नील जें सदें, यज़दाँ वकमन्द आवर ऐ दिम्मत सरदान।




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