अनुसन्धान का स्वरुप | Anusandhan Ka Swaroop

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Anusandhan Ka Swaroop by Dr. savitri sinha - डॉ. सावित्री सिन्हा

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ ्नुसन्धान का स्वरूप ज्ञान को सीमाश्रों का बढ़ाना हुमारे विश्वविद्यालयों में प्रसुख ध्यंय श्रभी नहीं समभका जाता है श्रौर यदि सिद्धान्त की दृष्टि से समझा थी जाता है तो श्रभी व्यवहार में बहू परिणत नहीं हो सका है । पुस्तकों आदि के फ़ोटो ले सकना इन फ़ोटो-प्रतिलिपियों का श्रासानी से सुलभ हो सकना श्रादि साधारण बातों के सुभीते भी श्रभी श्पने विदवविद्यालयों पुस्तकालयों तथा संग्रहालयों में नहीं हूं। प्रतिलिपि करने वाले टाइप करने वाले बेज्ञानिक सुचियाँ तेयार कर देने वाले सहायकों का तो श्रभी नितान्त श्रभाव हैं। यही कारण है कि खोज रूपी भवन के निर्माण करने चालें को भ्रपने देश में सज्दूर राज बढ़ई सहार इंजीनियर श्रादि समस्त व्यक्तियों का कार्य श्रकेले करना पड़ता है । इस प्रकार समय तथा बाक्ति का कितना श्रपव्यय होता हू उसका श्रनूमान लगाया जा सकता हू । भिन्न-भिन्न केन्द्रों में जो खोज-कार्य हो रहा हैं श्रथवा हो चुका है उसकी जानकारी प्राप्त करने के साघन भी झपर्याप्त हूं । कोई ऐसे जर्नल नहीं हूं जिनमें नियमित रूप से इस प्रकार की सूचनाएं प्रकाशित होती हों। पृथक्‌-पृथक्‌ विषयों की खोज के सम्बन्ध सें कोई वाधिक न्रवाधिक अथवा पंचवाधिक विवरण भी प्रकाशित नहीं होते । श्रधिकांश थीसिस भ्रप्रकाशित रूप में हो रजिस्ट्रारों के दप़्तरों में पड़े हैं । शायद बहुत से लुप्त भी हो गए हों तो श्राइचय नहीं । विदवविद्यालयों में थीसिस के मुद्रण तथा प्रकाशन के सम्बन्ध में कोई भी सुभीते प्रायः नहीं हैं । श्रघिकांदा विदवविद्यालयों के पास श्रपने प्रेस तथा जनेल भी नहीं हैं। खोज के लिए यात्रा-सम्बन्धी व्यय के लिए प्रबन्ध भी श्रपर्याप्त हैं। रिसचे . फ़ेलोशिप भी विश्वविद्यालयों में श्रत्यन्त श्रपर्याप्त हें । केवल रिसचे करने तथा कराने वाले प्रोफ़ेसरों की कल्पना भी श्री नहीं है । प्रोफ़ेसर का रथ भी इन्टर कॉलेज श्रथवा यूनिवर्सिटी में बी. ए. एस ए. तक पढ़ाने वाले अध्यापक से हैं । योंहिन्दी में खोज का क्षेत्र श्रसीम हैं । यह क्षेत्र श्रासानी से तीन भागों में बाँदा जा सकता हैं - १ हिंदी भावा २ हिन्दी साहित्य तथा




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