रीतिकालीन साहित्य के वैविध्य मे दंपति वाक्य विलास | Reetikalin Sahitya Ke Vaividhya Me Dampati Vakya Vilas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
509
श्रेणी :
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No Information available about डॉ. चन्द्रभान रावत - Dr. Chandrabhan Rawat
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भिषेष
राजन के राजाधिपति; पूथ्वीसिंद सुभूप 1
रजघानी श्रीकृष्णणढ, राजत दुर्ग अनूप 1
गो द्विज पाठक बृत दूद, पाठक अरिदल गाल 1
दिनकर दिनकर-वदय के, पृथ्वो सिह महिपाल । !
यह निश्चित रूप से नहीं कट्ठा जा सकता कि ये दोहे कवि
गोपाल के द्वारा रचित है अधवा प्रकाथक-सपादव को रचना है ।
अन्य प्रतियी में ये दोहे नहीं है, अत इनका गापालराय के द्वारा
रचा जाना संदिग्ध है । यदि ये कवि के द्वारा रचे हुए है, तो
कृप्णगढ़ वे राजा पृथ्वीसिंह स भी कवि का सबंध स्थापित हो
जाता है । किंगनगढ़ में उस समय इस प्रकार के कंविया का
सम्मान विशेष था | पर, यदि ववि दा सबंध इस दरवार से
होता तो वृन्दावनवाली प्रति में अवश्य ही इसका उल्लेख
होता । इस लिए कृप्णगढ़ से कवि का सबंध न मानना ही
उचित प्रतीत होता है । इतना अवध्य है कि कवि वा किसी
राजा के दरवार से सबध था । यह लगता है कि गोपालराय के
पू्वज प्र्णत किसी राजा के दर्रवार से सबद्ध होगे । गोपाल
याविं का संबंध उस दरवार से लामससातव का रह गया होगा । यदि
किसी राजा के प्रर्णत आशधितत होकर गोपाल अपनी स्वनाएं
करते तो कही न कही अश्रयदाता का नाम भी आता
वधवृत्ति का निर्वाह करते हुए भी कवि ने अपसो काव्य-सार्धना
सभवत स्वतन रहपर ही की ।
२. कुृतित्व
गोपाल कवि को प्रतिभा, अस्थास बोर वश-परम्परा सभी
बुछ सिला । इसी विरासत ने उन्दें एक चहूज कवि वना दिया ।
गोपाल वावि ने दपति बाकय विछास के अतिम भाग में अपनी
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है, दंपति बावय विलास (मुद्रित प्रति) पू ८
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