विजयप्रशस्तिसार | Vijayaprashastisar

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Vijayaprashastisar by विजयधर्मेसुरि - Vijaydharmesuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ विजपप्रशास्तिसार 1 प्‌ सुशीता सी थी 1 पद्द पतित्नता झपने पति के साथ सांसारिक खणो को भ्ानन्द झनुभव्र करती थी | इस चघमें परायण। साथी दंवी ने उत्तम गरस दो धार किया 1 जिस प्रकार झुक्ति में मुक्ताफल दिन प्रतिदिन बढ़ता है। उसी प्रदार गर्भवती का गे भी दिन पर- दिन बढ़ने लगा । इस उत्तम गर्म के प्रभाव से ग्रेठ के घर में अुद्धिन्समाद्धि परी झधिक पृद्धि दो गई । नवमास पूरे दोने के अनन्तर सं० १५८३ गो मारिष सुश्री < के दिन इस देवीने उत्तमोचम लक्तणोपेत पुत्र को जन्म दिया । शेठ ने इस पुभके जन्मोत्लव में यहुत द उत्तमोचम कार्य किये ! शेठ के पदां कह दिनौ रुक संगलगीत दोने सगे । यावकों को उनका श्रकार से दान दिए । सारे नगर फे आआयाल्त वृद्ध एष प्रतन्न मन दोकर उस मद्दोर्सव में सम्मिलित इप । “उत्तम पुरुपों का जन्म तल को झानद देने चाला नदीं दोता दे ? चन्द्रमा की कला के समान दिन प्रतिदिन यदद प्रतिभाशाली घालश चढ़ने लगा { जो लोग इसको देखते थे घो यददी कदते ये कि यद भारतथये का पूष तेजस्वी य दोगा । इस यालक की माता ने स्वप्न में 'द्वीररा- शी' दी देखीथी । पुत्र के उत्तमोक्तम लक्षण भी छिपे हुए नहीं थे । झथीद घद्द दीरे की तरह चमकता था । चस कहना ही फ्या था ? सब लोगो ने मिल कर इसका नाम सी 'दीरा' रस्त्र दिया । लोग इसको 'दीरजी' करके पुकारते थे । फाल की मदिमसा चित्य दै । हुमा फया १ दमारे दीर्ध माके माता पिंताने थोड़े हो दिनों में सम्यक्‌ू झार।घना पूर्वक देचछोक को अलरुत किया । कुछ दिन व्यतीत होने के चद्‌ दौरजी भाइ झपने माता-पिता फा शॉकदूर करके पनी वहन को मिलने के विचार से शींद्णुदिलपाटक ( सणदिलपुर पादन ) गये । घदन अपने भाइडी सुन्दर झाऊूति को {1




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