मानस - पीयूष संस्करण - 3 | Manas - Peeyus Sanskaran-3

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Manas - Peeyus Sanskaran-3 by अंजनीनंदनशरण - Anjani Nandan Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १५ ] दो० चो० ओर प्रष्ठ कुमार्गगामीके बल बुद्धि आदिका नाश २८(१०),३०१ कुयोगिनां सुदुलेभ॑ ४ छुन्द १०, ४८ कुयोगी 99 9 कुररी ३१ (३), ३३५ कूटस्थ १४ (३-७), १४४५ केकसी १७ (३), २०४ फेवल ४ छ॒न्द्‌ ६, ४८ क्या रावण विरोधी भक्त था २३ (६), २६२-२६४ खरदूषण-युद्ध और रावण-युद्धका मिलान २१ (१), २४८-२४६ खरदूपणादिको वरदान २० छंद ४, २४५ क्षोभपूर्ण आत्मनिंदा ३७ (४-६), शे८० गायत्री जपसे लाभ दो० १८, २३३ 5 9 के वाद जल फेंकनेका प्रभाव + ॥9 गुण १७ (२), ३२ छन्द १, २०४, ३४३ गुणकथन वियोगश्वन्नारक्ती एक अवस्था ३० (६-१३), ३३१ गुण-प्रेरक ३२ छंद १, ३४३-३४४ गुमानी, गुनानी १७ (१४), २१८-२२० गुरुसक्तिके ग्रन्थ दो० ३५, ३६६ गुरुके लक्षण मं० खो० ? में, ६ » णेज्षणोंका वर्णन केवल अरण्यकांडमें श्लो० १, ६ गूढ़ म~ सो० ६.१० गोचर १५ (२); १५४,१५६ गोपर इ२ छुन्द्‌ २, २४५ गोविन्द % 2 99 गोस्वामीजी कट्टर सर्यादावादी थे... दो० ३३, ३४४ > आर ब्राह्मण जाति दो० ३३, २५५-२५४६ » आओरनारिजातिका आदर्श १७(४-६),२६(७-११), दी? ३८, २०७-२०८,३१७-३१८,३२२५,शे८७ » के कुद वेधे हुए शब्द्‌ १६ (३-५), २३५ ॐ का लोक व्यवहार परिचय ३७ (४-६), ३८० » की सावधानता २७ (३), २८५ » की शली १७ (५), २०७ » रेसोंका रूपान्तर अन्तम भक्ति या शान्त रसमें ही करते दं २० छन्द (४-७), २४० ज्ञान क्या है १५ (७), १६३, १६४,१६६-१६८ दो० चो० ओर परष्ठ ज्ञान ओर संतके लक्षण १४ (७-८), १६५ ज्ञानका परिपाक मक्तिमें होना उसका फल है ११ (१६), १२० ज्ञान और भक्तिका भेद जान लेनेसे भगवानके चरण में अविच्छिन्न अनुराग दो० १६, २०४ ज्ञान-विज्ञान १६ (३), १८१ ज्ञानाहँकार ४३ (६), ४०६ ज्ञानियोंके पीछे भी माया लगती है. ४३ (६), ४१० घनिष्ठ प्रेमसूचक लीलायें ओटसे होती हैं १०(११),१०३ चतुँज तथा भुजचारीके भाव ३२ (१), ३४१-३४२ चरण और चरणुकमलका मेद २४ (१०); ३५६ चर णुचिह् ३० (१८), ३३२३-३३४ चरणुपंकज १६ (६), १६५ चर्णोमे लपटना प्रेमविद्वलतासे ३४ (=); ३५६ चराचरका दुखी होना (उदाहरण) २६ (६), ३१४ चरितद्वारा उपदेश ३७ (४-६), ३८० ध्वजे से नये प्रसंगका आरंभ ३७ (१), २७८ चिदाभास १४ (३-४), १५४ चुनोती दो० १७, २२ चोपाई संख्यासे मार्मका नाप ३ (४), ३५ जड़ और बुध मं० सो०, १०,११ जगाना, जागना १० (१७), १०५-१०६ जगद्‌ गुरु (राम) गुर ४ छंद ६, ४७-४८ जठाथु रामचरणुचिह्ृका स्मरण करते थे ३०(१८),३३३ जटायुकी आयु १६. (१४), ३१६ जगत्‌के नाना रूपोंको अज्ञानका भ्रम कहना ठीक नहीं ३६ (८-६), रे७२ जगतको मिथ्या कहनेका भाव 9... ॐ जड़पदार्थो में जीवत्व ७ (४-४५), ८४ जनकता दो० २३, ३० (२); २६६१२२५ जयन्तके परीक्ञा लेनेका कारण १ (३-४५), १८-१६ » को चार प्रकारका दंड (शरणके पूवं) २८४), २५ » असंगद्वारा सुरमुनिको ढारस दो० २, ३२ ». » में नवों रसोंकी कलक $ दद्‌ जय राम से प्रारम्भ होनेवाली स्तुति ३२ छंद १, ३४४ जानकी | ३० (७), ३१२६




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