तत्वार्थसूत्र | Tatvarthasutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ श्री ° जमनालाल जैन त्तंपादक ‹ जन जयत ' ने अथेति प्रूफ देखे है । प्रेस वर्चा मे और श्री मालवणिया वनारस मे -“>इसलिए सब दृष्टि से वर्धा मेदी प्रूफ संशोवनका काम विशेष अनुकूल हो सकता था जो श्री जमनालालजी ने यथासमव ध्यान पूर्वक संपन्न किया है। एतदर्थ हम उनके आभारी हूँ । तत्त्वार्थ हिन्दी के ही नही बल्कि मेरी लिखी किसी भी गुजराती या हिन्दी पुस्तक-पुस्तिका या लेख के पुन: प्रकाशन मे सीधा भाग लेने का मेरा रस बहुत अर्से से रहा नही है । मैंने अर्से से यही सोच रखा हूँ कि अभी तक जो कुछ सोचा और लिखा गया हैँ चहु अगर किसी भी दृष्ठि से किसी संस्या या किन्ही व्यक्तियों को उपयोगी जचेगा तो वे उसके लिए जो कुछ करना होगा करेगे | में अब अपने लेख आदि में क्‍यों फसा रहूँ। इस विचार के बाद जो कुछ मेरा जीवन या शक्ति अवशिष्ट हैं उसको मे आवश्यक नये चिन्तन आदि की ओर लगाता रहा हूँ। ऐसी स्थिति मे हिन्दी तत्त्वार्थ की दूसरी आवृत्ति के प्रकाशन में मुख्यतया रस लेना मेरे लिए तो समव न था। अगर यह भार केवल मुझ्न पर ही रहता तो निःसदेह दूसरी आवृत्ति मिकछू ही न पाती । परतु इस विपय में मेरे ऊपर आने वाली सारी जवाबदेही अपनी इच्छा और उत्साह से प० श्री मालवणियाने अपने ऊपर ले ली । और उसे अन्त तक भल्ती भांति निभाया भी । इस नई आवृत्ति के प्रकाशन के लिए जितना और जो कुछ साहित्य पढ़ना पडा, समुचित परिवर्तत के लिए जो कुछ ऊहापोह करना पड़ा और दूसरी व्यावहारिक वातो को सुलझाना पड़ा यह सब श्री माल्वणियाने ডল स्फूर्त से किया है। हम दोनो के बीच जो सवन्ध हैं वह आभार मानने को प्रेरित नही करता। तो भी मैं इस बात का उल्लेख इसलिए करता हूँ कि जिज्ञासु पाठक वस्तुस्थिति जान सके ।




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