कवि निराला | Kavi Narala

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Kavi Narala by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका ; रहस्यवाद छाया वाई ७ बाद जनता का ध्यान विशेष रूप से इसी अंग ने आकषित किया | नई शैली और नई अभिव्यंजना के कारण लोकप्रिय होने पर भी इसको सरलता से समझता नहीं जा सकता था, इसलिए आधुनिक काव्य को कई व्यंग्य-प्रधान नाम दिए गए। अस्पष्टता के कारण इसे 'छायाबाद! भी कह दिया जाता है ओर 'एरहस्यवाद' इस काठय का एक विशिष्ट अंग मात्र हैं । वास्तव में छायाबाद में छाया” अंश की प्रधानता थी ( छाया > अस्पष्टता ) | इस छाया” के कई कारण थे, कुछ का सम्बन्ध विषय से था, कुछ का टेकनीक से | पहले इस विपय को लेंगे । छायावाद काव्य के विषय थे ईश्वर की रहस्यमयी सत्ता, उसके प्रति आत्मसमपंण, विरह, मिलन, प्रम, प्रकृति, नारी-सौंदिय, राष्ट्र, मानव | विशेष नवीनता नहीं; परन्तु इन सबका आधार था सहजनुभूति | काव्य में चिंतन! ओर वोौद्धिक क्रम को कोई स्थान नहीं | फलतः इन सब विपयों पर जो लिखा गया, वह नवीन; परन्तु जनता को अस्पष्ट था। सब छाया-छाया; स्थून कुछ भी नहीं | स्त्रयं नारी के चित्रण भी स्थूल नहीं-- भावना-प्रधान उड़ते-उड़ते | छायाबाद'! एक प्रकार से महावीर- प्रसाद द्विवेदी के युग ( १९००-२० ) के नीति-अ्रधान, शुष्क, इतिवरत्त।त्मक काव्य के विरुद एक सजीव प्रतिक्रिया थी । दूसरे प्रकार से उसे अंग्रेज़ी और बँगला काव्य का प्रभाव एवं पलायन- वादी, व्यक्तित्व-निष्ठ कबियों की 'बहक' कहा जा सकता है। वास्तव में किसी भी युग के काव्य को अनेक दृष्टिकोणों से समना आवश्यक हाता है। छायावाद” के भी अनेक पहलू थे | उसका 'रहस्यवादी” अंश रवीन्द्रनाथ की गीतांजलि' और कबीर एवं बुद्ध के दुःखबाद से प्रभावित था | उसकी सूक्त्मानु- वेषण की प्रवृत्ति पिले काव्य के प्रति विद्रोह लिये थी। उसकी




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