हिंदी साहित्य बीसवी शताब्दी | Hindi Sahitya Bisawi Satabdi

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Hindi Sahitya Bisawi Satabdi by नंददुलारे वाजपेयी - Nand Dulare Bajpai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ११ | नहीं हो सकता । वह स्थायी संस्कृति और .सैन्दयं का उपादान है । पिर स्थूल दृष्टि से मी, काव्य की सामयिक उपयोगिता और आवश्यकता को परखने की शक्ति भी तो हममें होनी चाहिए. । दूसरे आरोप का उत्तर यह है---प्रसादजी के प्रच्छन्न प्रेम-बर्णनों में क्रमशः उनका व्यक्तित्व उद्घाटित होता गया है ओर कामायनी' में आकर वह पूर्णतः उद्घाटित हो गया है । (कामायनी मै कि प्रकार की प्रच्छुन्नता नहीं रह गई है। यह व्यक्तित्व का उद्घाटन दंत: काव्य को एक अपूर्व स्वस्थता श्रोर विशालदा प्रदान कर सका है। तीसरी आपत्ति का उत्तर यह है-- काव्य को उसकी एतिहासिक पृष्ठभूमि पर देखने से यह प्रकट होगा कि सबसे पहले प्रसादजी ने ही इस सांस्कृतिक इन्द्र का निरूपण किया है। इस पर उनकी प्रतिक्रिया एकदम निमेधात्मक नहीं है। वह समझौते की सी स्थिति तक गई है। समय को देखते हुए. इतना आगे कोई दूसरा कवि नहीं जा सका । द 1 यहाँ यह मी समभः लेना चादि कि प्रसादजी का रहस्यवाद जीवन-दशंन प्रच्छुन्ष प्रेम-वर्णनों में नहीं है, न वह नवीन वास्तविकता के निषेध में है। यदि ऐसा होता तो हम प्रसाद के काव्य और उनके व्यक्तित्व को किसी हद तकर पलायनवादी कह सकते ये । किन्तु तब उसमें शक्ति की शोर सौन्दर्य की वह धारा न दीखती, जो दीखती है । प्रसादजी का रहस्यवाद जीवन-हन्दों की स्वीकृति ओर उनके परिहार में देखा जाता है । सुख और दुःख की विपरीत परिस्थितियों के सामझस्य ओर सहन में देखा जाता है । अथवा वह कहों-कहीं करुणा की विश्वव्यापिनी सत्ता के निरूपण में देखा जाता है। प्रसादजी का रहस्यवाद वास्तविक ( ?०»0४6 ) सत्ता है। उनका नियतिवाद और निराशावाद उनके चरम सिद्धान्त नहीं । बे उनके चरम सिद्धान्त रहस्यवाद क उन्मेष करने, उसे प्रखर बनाने और अधिकाधिक शाक्ति-सम्पनन करने में सहायक हुए हैं। हन्द्दों की वीज़ता के कारण प्रसाद का साहित्य प्राशमय शरोर उदात्त हो गया दै दोन पो का समान सौकयं के साथ चित्रण करना ( जैसा उनकी प्रोढ़ रचनाओं में देखा जाता है ) प्रसाद के निस्‍्संग व्यक्तित्व का सूचक है और जो बाइल्‍य और प्रसार उनके काव्य में पाया जाता है वह उनकी महती जीवनाभिलाषा ऋ परिचायक है | इस




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