महावीर कर्ण | Mahaveer Karn

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Mahaveer Karn by राम नारायण - Ram Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| (ও) कंधे वृषभ के कंधों की तरह ये | वह बड़े ही चमकीछे, दिव्य कवच और कुंडल पहने हुए था। यह देखकर झुंती पहले तो - बहुत प्रसन्न हुई और अपने सौभाग्य पर बढ़ा घमंड करने लगी। पर दूसरे ही क्षण उसे ख्याल हुआ कि अगर पुत्र-जन्म की . बात फैल गई तो उसकी और उसके कुल की बड़ी बदनामी होगी, दुर्वासा के दिए हुए मंत्र और सुर के वरदान पर कोई विश्वास न करेगा । 'अतएवं वह इस सोच में पड़ गई कि क्या चारना चाहिए | अभी तक छुंती मे एक दासी को छोड़कर और किसी को ग्रह भेद नहीं बताया था | इसलिये उसने उसी दासी को सलाह ` करते के लिये बुलाया । दासी की राय हुई कि वदनामी से बचने , के लिये बालक को नदी में वहा देना चाहिए 1 पहले # न्ती इसपर राजी न हुई, पर जब दासी ने सव अँचन-तीच समेमायां , तो लाचार होकर उसे यह बात साननी पड़ी,। निदान दासी की ._ सहायता से एक संदूक मँगवाया गया और उसके भीतर बढ़ा कोमल विछीना लगाकर वह बालक लिटा दिया गया। इसके ' . वाद्‌ संदूक बंद कर दिया गया और ऊपर एक ऐसा लेप लगा दिया गया जिससे पानी भीतर न जा सके । उस समय कुती का हृदय फढा जा रहा था--मादग्रेम उबल्न पड़ता था । तबियत चाहती थी छिस चाँद के ठुकढ्ढेन्मैसे पुत्र फो फरेजे से लगाए रखे, दूर न करे। पर बदनामी के डर से ऐसी वेहरमी करनी पड़ी । अंत में वहुत रो-पोकर, बार-बार उसके सिर और , भाये को सघफर, सैकड़ों देवी-देवता मताकर छ ती ने उस जिगर , कटुके को গ্মহন नदी मे बहा पिया भौर भगवान्‌. से पाथना ४




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