मधुकोष | Madhukosh

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Madhukosh  by रत्नाम्बर दत्त - Ratnambar Datt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शि,, प्रदृशिनी में न जाने कितनों माताएं अपने लाडले लालों को पतियोगिता-पुरस्कार के लिये खूब नहला-घुला कर साफ़-सुथरे कपड़े पहिना कर, आखों में काजल माथे पर ढिटोना लगाकर ले जाती हैं । पृत्येक ममता- मयी-माता यही खमझती है कि उसकी “मोदी का छाल! सब से खुन्दर है ~ इनाम उसे मिल हीः कर रदेगा । किल, निणीयकों को घोषणा पायः अधिका माताओं की कोमल कामनाओं को रेणुका-भवने की तरह छिन्न-सिन्न कर देती है। इतना दोते हुए भी, वे बेचारो उन भोले-भाले पराजित प्राणियों को उपेक्षा की दृष्टि से नहीं देखतीं। प्रत्युत, और भो अधिक प्यार करने लगती हैँ । उनकी तुतली-भांषा पर घुग्ध, चाल-ढाल पर छट्हू ओर दाव-भाव पर मस्त हो সানী ছু!




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