खाट पर हजामत | Khat Per Hazamat

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Khat Per Hazamat by रोशनलाल सुरीवाला - Roshanlal Surivala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इण्टरबव्यू १३ गये । छोटते वत्त ११ वजे थे। कालिज भाग कर पहुंचे, किन्तु वहाँ अभी ताछा ही लगा था। अन्दाजन आधा घण्टे पश्चात्‌ एक आदमी आया । नोकर माठ्म देता था। हमने पूछा, “आज इण्टरव्यू है ? ” “सो का भई! “४१० बजे का टाइम दिया था, अब साड़े ग्यारह बजे हे ।” सो का भई ।” “हुम बाहर से आए हैं ।” “सो का भई।” “नुम मूखं जान पड़ते हो , मैने धैर्यं खोकर कहा । “सो का भई ?” और वह निलिप्त भाव से अन्दर चला गया। ठीक दो पंटे बाद इण्टरव्यू की नौबत आई। सात-आठ आदमी थे। एक নত आकर क्रम से बैठाल गया। में अपने नम्बर पर साँस रोके बैठा था कि तभी अन्दरसे गाने की आवाज आई। मेरा साथी रणधीर्रासिह एम० ए० ऊंची मर्दानी आवाज़ में चीख रहा था, 'सैयां तोरे कारन, आगन बन जाऊँगी ।” जभ वह्‌ बाहर आया तो पसीना पोच रहा था। मेंने पूछा, “यह क्या बदतमीजी थी ? ” “मरतावया न करता ? कम्बस्तों ने गवाकरदेखा था, रणधीर सिंह ने कहा। “में कुछ और पूछना चाहता था किन्तु तभी मुभे कलक अन्दर पकड़ छ गथा} “हुं” उन लोगों में से सात आठ ने हुंका रा-सा भरा, तो तुम्हारा विशेष कवि सूरदारा था ।” “जी हाँ”, मुझे उत्तर देते समय बड़ी प्रसन्‍तता हुई और में सूर- दारा के विषय में अजित ज्ञान की दुहराने लगा | तभी अप्रेत्याशित गोली छदी, “आप अभिनय भी जानते हें ?” अभिनय”, में चौंका, “क्या লজ ?” “देखिये, उनमें से एक ने स्पष्टीकरण किया, “प्रति छः নাছ में.




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