एक कहानी मेरी भी | Ek Kahani Meri Bhi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
9 MB
कुल पृष्ठ :
335
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सच्चे पठान की तरह वह जो मन म होता है, कह देते हैं। यही बात उतके विनोद
के बारे में भी सच है| काग्रेस वकिंग कमेटी की एक बठक ववई में सितबर 1940
में हुई। एक दिन प्रख्यात उद्योगपति घनश्यामदास बिडला ने सदस्यो से गाघीजी
के साथ दोपहर का भोजन करन का अनुरोध क्या। वे लोग एक बड़े कमरे मं
पहुँचे औौर थालिया मे परोसे हृए शाकाहारी भोजन का स्वाद लेन के लिए जमीन
पर बैठ गये । मौसमी লী से भरी हुई एक बडी सी तश्तरी बीच में रखी हुई
थी। अतिथिया को नारगी की कुछ फॉर्क, कैले के वुछ टुकड़े और कुछ अगूर दिये
गये। नौकर जब वादशाह खा के पास फल लेकर पहुंचा तो उम्हानं वड तश्तरी
को नजदीक लाने के लिए कहा ताकि वे जो चाह ले लें। इसके बाद उहोव विडला
से भी कुछ खान के लिए कहा और उहें एक नारंगी दी। फोरन ही भोजन के
कमरे म॑ मेंडरान वाला डाक्टर आया और उसने बिडला को थोडा सा लहसुन
दिया। उद्योगपति ने नारगी की मुश्किल से कुछ ही फार्के खायी होगी कि डॉक्टर
फल कै अम्ल का असर द्र करने के लिए उ ह गोली देने को फिर हाजिर हो
गया । वादशाह खाँ काफो दिलचस्पी से उसकी हरकतो की दख रहे थे और उ होने
अपन साथियो का भी ध्यान इस ओर दिलाया | यकायक वह विडला की ओर मुड्डे
और कहा, “सुदा ने तुमको दौलत दिया है और हमको दिल | हम तो खा खाकर
मरेगा और तुम देख देसकर मरेगा।” इस पर सभी लोग खूब जी खोलकर हेँसे,
लेकिन गाघीजी उनके इस तर्क से सोच में पड गय और उ होने बादशाह खा से
अपने विचार कुछ और समझाने के लिए कहा। गाघीजी न उनकी তীক্ষা बहुत
ध्यान से सुनी और आखिर मे अपने मेजबान से वहा कि वह हर रोज़ कुछ मिनट
पठान नता के साथ गुजारा करें और उनसे कुछ नसीहतें लिया करें।
बादशाह खाँ अहिसा के पुजारी हैं, लेकिन वह इतने व्यावहारिक और अमली
इसान है कि किसी असाधारण परिस्थिति मे सहज भ्रवृत्ति वा सहारा लेने की
आवश्यकता की उपक्षा नही करते थे। हम लोग एवटाबाद जिले में 'भारत छोडो'
आदोलन के दौरान नज रबदी की मियाद काट रहे थे कि 1943 के विनाशकारी
और भयक्र बगाल के अकाल की खबर आयी। 30 लाख से अधिक लोगा की
मौत की खबर से स्वाभाविक रूप से हम व्याकुल हो गये । वली जक्सर यह पूछते
कि भूले लोग अंग्रेजों के मुह से रोटी क्या नही छीन लेते ? बादशाह खा ते हमारी
विचारधारा की हिमायत की तो हम ताज्जुब हुआ। उहाने कहा, इस तरहस
मरने से अहिंसा का मकसद पूरा नही होता। यह बुज्ञ दिली है। कौन एक पूरी
कौम का बुज़ दिल बनाना चाहेगा ? उनमें कुछ करन की हिम्मत की कमी है। कोई
उहदे रास्ता बताने वाला नहीं है। >ग्रेज़ सुभाप बाबू के बच मिकलने वे लिए इत
गरीब लोगा को सजा दे रह है । व कितन निदयी और वरहम हैं ! क्या खुदा इन
गर इसानी हरक्तो के लिए उट् माफ करेगा?”
पेशावर मे ही दो विदेशी अतिथि हमारे साथ आकर ठहर। हमारा पूरा
खानदान ही इह चमत्कारी विभूतिया मानता था। इहोंने मेरे दिमाग पर गहरा
असर डाला। इनम से पहले मेहमान रउफ ओराव्वाय 1932 म आये थे, जो
रउफ पाशा के नाम से मशहूर थे। तुर्की बे फोजी जहाज़ 'हमीदिया' के साहसी
कप्तान के रूप मे उहोने काफी नाम कमाया था। पहले महायुद्ध मे লি লিল-
राष्ट फे करई जहाज ड्वो दिये थे । वाद म वह तुर्की के प्रधानमनरी बन । वह मेरे
भाई अब्दूरहमान के दोस्त थे जो 1912 मे तुर्की चले गये थे और पहले विश्व युद्ध
मे बहा क फौज म भर्ती हो गये ये नोर गद मे काति के घटना प्रबल, उथल पुथल
राजनीतिक प्रशिक्षण 17
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