भक्त ध्रुव | Bhakat Dhruv

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Bhakat Dhruv by हरिदास माणिक - Haridas Manik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पिला शरक १ डर पात কী देख रेख कर डालिन महं पत्तिन धियि । -श्रावो० हिलमिल कर सब; पूनि देवि आव मन वांच्छित फल को लहिये। -आवो ० १ खली--कैखा सुन्दर उपवन है। अहा [ অহ देखो सखी उस र सरोवर मे खरखिजों का समह केषा सुन्दर माल्म पड़ता अहा बीच के कमल की शोभा ही निरालीदहै। अरजी वह ' उठा हुआ है पर बीच में खाली है द द २ सल्ली--खाली क्या ¡ ऐसा तो मेंने कमल द्वी कहीं नहीं । अह| पीलो पीली पंखुरियों के बीच में रक्त मय निकलतों कमल ऊपर सुफेदी लिये, हरा हरा बड़ा ही सुन्दर माल्ठम.पड़ता हाय कहीं इसकी कमंलिनी भी ऐसो ही छुन्द्री होती तो | की जोड़ ठीक हो जाती । ३ खखी--हाथ इस कमल के योग्य तो हमारी राजकुमारी हैं | सुदचि--देखो कमला मुझसे हंसी न करो नहीं तो में यहां ली जाऊंगी। फिर न आऊंगी और न तुम्हें भी बुलाऊगी । कमला--जाबोगी कहां कमल के पास । सुरुचि--भला लिट्टी गड़ेरी का क्या संग | सूय को देख कर ल खिलवा है चन्द्रमा को देख कर कुप्रुदिनी खिलती है, फिर कमल से तुमने युके कमलिनी बना कर जोड़ी बनाई है यह गरी केष्वी ভিতাই ই। ४ सखी--डढिठाई नहीं सखी बल्की यह सब कुछ बहाने बाजी तुम्हारी शोभा बढ़ाई है। तुम्हारा मुख चन्द्रमा की नाई प्यमान है हम कुमुदुनियों के लिये वह चन्द्रमा के समान है | 12. देख कर हम ब्ब मारे हष के फूली फिरती हैं।




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