सनातन धर्म भजनमाला | Sanatan Dharma Bhajanmala

Sanatan Dharma Bhajanmala by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सनातनधर्ममजनमाला | (९) जब तिनके पति आवत निज गृह पावत अपनी पत्नी परघर ॥ धनधन्य हरी धनधन्‍्य सखी धनधन बेंसुरी तन मन ढियो हर ॥ शिव नारद आदि सकल ऋषि मुनि सबदेखत गगन विमान ,रे ॥ कौतुक गिरधरके लखि न परे तनु मानुष बह्ल अखंड हरे ॥ युवती तनु नारी वेदसुरवि रविदीक्ा बजमें खेल करें ॥ हरिपुण्य वे पाव ने दुःख व छुख वेदान्तके कत्ता खेद परे॥ रचि छन्द यह काशीगिरि स्तुति कर मांगत भक्ति पदारथ वर॥ धनधन्य हुरी पनधन्य सखी धनथन बँसुरी तन बन दियोहर ॥ बन्द दश्ण सरोज तिहरे ॥ सुन्दर श्याम कमल दृढकोचन ठलित त्रिमेग प्राण पतिप्यारे ॥ जे पद पञ्च सदा शिव्को धन दिन्धखुता उरतं नहिं ररे ॥ जे पद पञ्च तातारिस चात मन द्च क्रम प्रहकाद मारे ॥ जे पद पृद्च पिरत वृन्दावन अहि शिर धरि अगनित एषु भारे ॥ जे एद्‌ पश्च प्रसि वजयुव्ती জনই স্ব অহন विकारे ॥ जे पदं प्र छोकतचरय पावन सुरार दरश करत अध मारे ॥ जे पद पत्न परसि ऋषि पत्नी नृष और व्याध अमित खल तारे ॥ जे पद पद्म करत पांडव गृह दूत मये सन काज वारे ॥ ते पद पंकज सूरदास प्रभ॒ तरिविध ताप दुख हरण हमारे ॥ गोपी गोपार छाछ रास मण्डल নারী ॥ तत्ता थेदवा सुगन्ध ॒नितैत गहि बाँही ॥ दुम द्रुम इम इम सूद्ग छन नन्‌ नन्‌ हप रगं इगृता इगता तग उषटत रसनाद्रं । वीव ठार वीच वाङ प्रतिप्रति अतिदवि रषा अविगव गति अति उदार निरसि घ्म सरा । भीराधा मुख शरद ` चन्द परत जछ अम अनेद ` श्रीवजचन्द छटक छटक करत मुकठे




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