कविरत्नमाला [भाग 1] | Kaviratnmala [Bhag 1]

Kaviratnamala [Part 1] by मुंशी देवीप्रसाद मुंसिफ़ -Munshi Deviprasad Munsif

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्विश्दाकाझा। . ट. नी सरानेके राजा दुंगरसिंहजीष्े হী ইউ হালভাঘ शौर खड दाख थे गामदास बाद्शाहके हंद्सले किसी खड़ाईसे ण्ये व पीछेसे डगशसिंहजीकः देहान्त हो गया तो शासमदायने अपने छीोट भाईके यह लिख भेजा कि से लड़ाईं छोड़कर नहीं आ सकता हूं ओर गद्दीका खाली इहना उचित नहीं है । इसलिये तुस बेठ जाओए । खड़गदास इस तरह शझपने भाईकी शरक्षय पाकर साजा हो गये पोछेसे रामदास छाड़ाई जीतकर आये तो ऋलवण्से ९३ कोंस पर হাজত লাজ হজ गांव बसपकश वहां रहने लगे । उनके चार बेटे भगानद्‌ार, रा चोद्‌ास, व्चकिंह रैर दिसनदाख हुए । भगवानदसने शामपुरेंसे ६ कोस प्रएबकी बनक লাভা হজ বাত अपना राज्य झ्माय! । उनके बेटे ग्चलदाय थे । अपलदासके पृष्वीशिह, उनके गद्माराम, उनके बंखतसिंह, उनके देवीछिंह, उनव्े फतहसिंह, उनके नाहरखिंह, उनके कृपाशम हुए जिचको ९१घोड़ोंकी जगीर तीन्गांव, किशनपुर, वशे दरक्मर अलवश्ते सिले, क्योंकि उनकी बाईका' व्यड श्रलवर्के सद्श्यज सर्मशणिहिजीसे हुआ था । इनके कुंवर विड़दर्सिहजी अब किशनपुरेके ठाकुर हें इनका जनन्‍स सस्यत ९८४७ में असपट्ट सुंदी ९ की हुआ অব ।. इन्होंने काव्य एचना कविशाव शुलाबसिंहजीसे सीखी है और कवि शवजीने ही पहले इनके कवि होनेंका व्योरश हसको' दिया था पिर. ष्क छोट भाई इंश्वशेसिंहजी जीएम हससे सिले ओर उन्हे विड दर्सिहजीकी ओर शलवरके कई दूस कदि्योकी कविता साकार हमको दी जिसके लिये हम इनका बहुत उप्कार सानते हैं विड़द्सिंहजोकी कविता विद्वत्ताले परिप्ण है। इनकी पद आज्छ, युक्ति अच्छी ओर भाव थी च्छा হীলা ই ভব कुछ थहां लिखी जाती ইঁ. নিবি । नहीं गए्जत बाजत दुदुभि हैं चपला न कड़ी तरवारि अली । चण्वान तुस्ङ्ग ये माधव चातक सोरन बोलन লীহ वसै ॥ जलधार न जार शिलो सखकोी घन हें न मतडनकी ऋवल्पी। पश्या न विचारि भट्ट शिव्ष खलजि साज मनोजकी प्यैज यसी ॥९॥ २




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