शीघ्रबोध भाग ३ | Shighra Bhaag- 3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shighra Bhaag- 3 by हजारीमल जी - Hajarimal Ji

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हजारीमल जी - Hajarimal Ji

Add Infomation AboutHajarimal Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(१३) प्रस्तावना ~ प्यारे सन गण ! यह बात तो आपलोग बखुबी ज्ञानते दे कि हरेक धर्मका महत्व धमे साहित्य के दी अन्तगत रद्दा हुवा है. जिस धर्मका धमसाहित्य विशाल क्षेत्र विकाशित द्ोता है उसी धमेका धर्म महत्व भी विद्या भूमिपर प्रकाश किया करता है अर्थात्‌ ज्यों ल्‍यों धर्मेसाहित्य प्रकाशित होता है त्यों त्यों धमिका प्रचार बढ़ा ड। करता है। आज़ सुधरे हुवे जमाने के हरेक विद्वान प्रत्येक धरम साहित्य अपक्षपात रष्टिसे अवलोकन कर निस निसं सादहित्यके अन्दर तत्च वस्तु होती है उसे युणय्ादी सज्जन नेक दष्टिसि महन कीया करते है अतेव धम साहित्य प्रकाश करने कि अत्यावश्यक्ता को सव ससार पक दश्टिसे स्वीकार करते है। घम साहित्य प्रकाशित करने मे प्रथम उत्सादही मद्दाशयजी ओर साथमे लिखे पढे सहनझशील निःस्पही पुरुषार्थी तथा तन मन धनसे मदद करनेवालों कि आवश्यक्ता है। पत्येक धर्म के नेता लोग अपने अपने घम साहित्य प्रकाशित करने में तन धन मनसे उत्साही बन अपने अपने घमम साहित्यकाँ जगत मय बनाने कि कोझ्ीस कर रहे है । दुसरे साहित्य पेमियों क्लि अपेक्षा दमारे जैनधर्मके उच्च कोटीका पवित्र ओर विश्ञाल साहित्य भण्डारों कि ही सेबा कर रहा है पुरांणे विचारके छोग अपने साहित्य का महत्व ज्ञान भण्डारोंस रखने मे दही समझ रहे थे | इस संकृचित विचारोसि हमारे धर्म साहित्य कि क्‍या दशा हुड्ड वह हमारे भण्डारों के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now