मधु - श्री | Madhu Shree

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Madhu Shree by गोपाल शरण - Gopal Sharanहरशरण शर्मा - Harsharan Sharma

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हरशरण शर्मा - Harsharan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन मेरी रचनाओझों का एक सप्रह 'सुप्रमा? के नाम से আমের बस्धु-आश्रम, प्रयाग से सन्‌ ३४ में निकला था। पन्न-पत्रिकाशों में उसकी चर्चा मी हो चुकी है। यह दूसरा सप्रद मधु-भी? साहित्यिकों को भेंट कर रहा हूँ । मैं जिस वातावरण में रहकर सादित्य-सेदा कर रहा हूँ, उधकां झनुभव करने पर प्रत्येक पाठक को मेरे प्रति हार्दिक सह्टानुभूठि हुए दिता ने रहेंगी, ऐसा मुझे विरवास हे । “मुपमा” उस समय को रचना है, जिंत समय दाब्य में मैं कल्यना को विशेष महत्व देता था; ढिस्तु साहिस्पक प्रगति के छाप हौ मेरो रुचि में भी परिरतन हुआ भौर मैंने उठ दिशा की ओर चलने का प्रयास ढ़िया नह अतुभूतियाँ कत्यनाओों के घन्दराल को स्पर्श ढरतौ हें। अस्त, एस ६४६ में प्रायः उन्हीं रचनाओों डो स्वान दिया




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