महासमर | Mahasamar

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Mahasamar by श्री कान्त व्यास - Shri Kant Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'खूब 1, ल्युसियां बोला, अच्छा, तब क्या ! दूसरों की तरह बिलार भी ' लोगों को सशस्त्र कर देगा। और भी मुश्किल यह है कि वह बहुत कमजोर दिल का आदमी है। लेकिन खेर, यह सवाल नहीं है । आजकल मेरे पिता तो दक्षिणाक्षियों के बहुमत के साथ हैं ।' वह फिर चुने जायेंगे और, इसमें संदेह नहीं कि पूरी इमानदारी के साथ वह वामपत्ष के साथ होगे | वह्‌ ऊपरी मध्यम श्रेणी के तो अवश्य हैं किन्तु ईमानदार हैं। यह भी ठीक है कि मौका आने पर कल फिर वह वही करेंगे जो कल्तक उन्होंने किया था। इस प्रकार के आदमी बदलते नहीं । गस्ता बस एक ही है, और मैं जानता हूँ कि तुम मुझसे क्या कहने जा रहे हो | लेकिन अगर क्रान्ति करनेवाली जनता होती है, तो उसकी तैयारी करने के लिए एक संगठन की भी आवश्यकता पड़ती है। क्रान्ति करना - भी एक कला है। क्यों है न्रे ¢ রী वह बोला, भाई, मेरी राय में तो कला कुछ और ही चीज है.। तसवीरें पेंट करना और पेड़ उगाना कल्लाकार का काम है। लेकिन क्रान्ति एक दुर्भाग्य की चीज है जिसकी ओर लोग ढकेल दिये जाते हैं। हर उड़ती हुई चीज को पकड़ने की कोशिश होती है | ठुम परिवरततन चाहते हो, किन्तु मैं तो ऐसा जीवन ' चाहता है, जो बिलकुल शान्तिमय हो, जिसमें कोई विशेष घटना न हो, क्योंकि “तभी मनुष्य इतमीनान से चीजों का अध्ययन कर सकता है और कुछ सीख “सकता है। देखो न सेजां को। उसने अपनी सारी जिन्दगी सेब के फलों को देखते हुए बिता दी, और उसने कुछ देख लिया | यह है मेरी अत्ली कला | यह सुनते ही पियेरे उछल पड़ा और बोला, हाँ, स्टूडियों में बैठकर ऊँघते समय तो यह कह देना आसान है। लेकिन उस समय क्या करोगे जब तुम्हें लारेवों मं मशीनगनों के साये तले इधर-उधर भेजा जाने लगेगा १ तब,सोचने- विचारे का समय कहँ होगा १ श्रि ) तुम इस प्रश्नकोजरादंगप्े सोचने की कोशिश क्यों नहीं करते ¢ तरद बोलना तो नदीं चाहता था, किन्तु बोल ही उठा। जानेत अपनी ज्ड़ी-बड़ी आँखें फाइकर उसकी,ओर देख रही थी। उसकी नजरों में वह चद्तःहु्रा जान पड़ता था, मालूम होता था जैसे वह आंद्रे नहीं रह गया है । পপ




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