अहिंसा - दर्शन | Ahinsa Darashan

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Ahinsa Darashan  by बलभद्र जैन - Balbhadra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४) के दो प्रकार गृहस्य की श्रहिसा मर्वादा-हिसा शब्द व्यापक श्रथ में-“अहिंसा का विराट रूप--जैन शासन में अहिसा का स्थान एष्ट १२४-१४० ४--६हिंसा और अ््दिसा : एक अध्ययन हिंसा का कारण - परधात बनाम आत्मधात--जीवदया बनाम आत्म दया - हिंसा अहिसा का निर्णायक तत्व भाव--हिसा का फल-- हिसा का प्रयोजन--हिंसा क्यों त्याज्य है --श्रहिसा का স্সাপাহ सर्वसत्व समभाव है--श्रहिसा के लिये हिसा का त्याग एक ग्रावश्यक शर्त है-- हिंसा के व्याग के लिये हिसा के साधर्नो का त्याग श्रावश्यक है-हिसा दिख जीयो की सख्या पर निर्भर नहीं है--अहिसा के सम्बन्ध में कुछ आन्त धारणाये-व्यावहारिक जीवन और निश्चय मार्ग--एक ग्रश्च-- धर्म के नाम पर हिंसा की मान्यता--दुखी जीवों का वध--सुखी जीवो का घात-स्वर्ग की आशा में श्रात्मपात --हिंस और हानिकर जीवों का वध पष्ठ १४१-१६६ ४--अहिंसा और ब्रत विधान सारा ब्रत विधान अहिसा का साधक और पोषक है--पापों का आकर्षण और उसका प्रतिरोध-मनुष्यो के चार प्रकार--श्राचार के दो मेंद--अशुक्रत और महाबरत -अ्त आत्म विजय की साधना है--- नैतिकता के अभाव से युद्ध और शोषण का विश्वव्यापी दौर--नैतिक मूल्यो के प्रति व्यक्ति को आस्था--बतों का नैतिक मूल्याइन--जतों का सामूहिक नैतिक प्रमाव--जीवन की व्यावहारिक पृष्ठ भूमि पर अगुज्ञतों का विधान--अश्रणुज्ञतों का उद्देश्य वैरहीन समाज की स्थापना है-- रणतो ক भेद्‌-श्रहिसागुत्रत-- सत्याशुत्रत-- त्रचौरयाशुत्त ब्रह चर्यागुत्रत--परिअह परिमाणतरत -सप्तशील--श्रात नियमन की भावना अनर्य दर्ड विरति--भोगोपभोग परिमाण्वरत--सह्लेखना या वपामि छठ १६७२६९०




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