कंब रामायण | Kanba Raamaayan

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न. वी. राजगोपालन - N. Vee. Rajgopaalan

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श्री अवध नंदन - Shree Avadh Nandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुन्द्रकारंड दे होने लगे | वह ऐसा लगा मानों संसार में दुजनों के रहने के कारण उनके विनाश के लिए मकरों से भरे समुद्र से विष्णु भगवान्‌ ऊपर उठ आये हों | शास्त्रों में प्रतिपादित शेय विषयों का ( णुरु-सुख से ) श्रवण न करने के कारण लुद्र व्यक्ति जिस प्रकार पहले इंद्रियों के विषयों का आस्वादन करके फिर उन्हीं मं ड्रब जातें हैं उसी प्रकार प्थ्वी ससुद्र-मंथन के समय पहले ( मंदर-पव॑त को ) घारण करके फिर उसके भार का सहन न करने के कारण धँस गई थी और वह मंदर ड्रब गया था। फिर विष्णु ने कच्छप के रूप में आकर उसे उठाया तो जिस प्रकार वह ऊपर उठ आया उसी प्रकार अब वह मेनाक भी समुद्र के भीतर से ऊपर उठ आया | दोनों पाश्वों में अपने अति हृढ तथा सुन्दर पंखों को फेलाकर प्रशंसनीय शरीर- ज्योति से प्रकाशमान हो सुपर्ण नामक पक्षिराज जब स्वर्ग से छीनकर लाये गये अमृत को लेकर विविध विभूतियों से पूण जलघि को चीरकर ( पाताल में ) प्रविष्ठ हुआ था और फिर बह जिस प्रकार वहाँ से ऊपर उठ आया था उसी प्रकार वह मेनाक भी समुद्र से ऊपर उठा | सुष्टि के प्रारंभ में जब सर्वत्र जल-ही-जल व्याप्त था तब सष्टि का आदि और अन्त बनकर अदृश्य रूप में रहनेवाले परमात्मा के करुणामय संकल्प को प्रकट करता हुआ एक अनुपम स्वर्णमय अंड निकला था.। उस श्रंड से वह ब्रह्मा निकला जिसने तीनों लोकों को सृष्टि की और समस्त प्राणियों को उत्पन्न किया । उसी स्वणमय अंड के समान अब वह मेनाक समुद्र से ऊपर उठा | आदिकाल में यह सोचकर कि इस जल में सुके उत्पन्न करनेवाले अपने पिता- परमात्मा को जबतक में प्रत्यक्ष न देखंगा तबतक कोई सत्काय॑ नहीं करूँगा बह प्रथम ब्राह्मण ( ब्रह्मा ) मानों शीघ्र उस जल में निमय्र हो गया हो और उसके भीतर ही अपनी. तपस्या पूरी करके फिर ऊपर उठा हो |. उसी प्रकार वह मेनाक ससुद्र से ऊपर उठा | पुष्पसाला के कारण उत्पन्न अपराध न सहन करके क्रोधी ( दुर्बासा ) सुनि ने शाप दिया तो उससे इन्द्र की जो संपत्तियाँ समुद्र में हब गई थीं उनको फिर वह _ अनादि प्रथम देव ( विष्णु ) बाहर निकालने लगे थे | उस समय देवासुरों द्वारा मधित समुद्र से जिस प्रकार चन्द्रमा प्रकट हुआ था उसी प्रकार अब मेनाक समुद्र से निकला | उसके कुछ शिखर रंग म॑ केसर पुष्प की समता करते थे तो कुछ नील रंगवाले थे । कुछ शिखर जल में जड़ फेलानेवाली प्रवाल-लताओं से आवेष्रित थे तो कुछ अरुण स्वर्ण से रंजित थे | इस प्रकार के शिखरों की घाटियों में जो मकर अपनी . . मादाओं के साथ. सोये पड़े थे वे अब निद्रा से जगकर निः्श्वास मरते हुए इघर-उघर भागन लगे | उसके शिखरों मं बक़ रूपवाली तथा पूण ग्भवाली शुक्तियाँ बोल रही थीं । बहाँ फेला हुआ शंबाल आकाश में छाये हुए बादलों की समता करता था | स्फटिक-शिलाओं निकलते वतकसकाततिकमपीग किक ? इवन्द्र के प्रति दुर्बासा के शाप की कहानी बालकांड में बर्शित है [--अनु०




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