साहित्य | Sahitya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sahitya by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravendranath Thakur

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

Add Infomation AboutRAVINDRANATH TAGORE

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हमारी इन सब बातोंके कहनेका तात्पयं यही है कि हमारे भावोंकी सष्टि कोई खामखयाठी चे्टा नहीं हैं। यह वस्तु-सष्टिके समान ही अमोघ नियमों के अधीन है। प्रकाशके जिस आवेगको हम बाह्य जगत्‌के समस्त अणु परमाणुओंके अन्दर देखते हैं वही एक ही आवेग हमारी मनोद्त्तियोंके अन्दर श्रबल वेगसे कार्य कर रहा हैं। इसलिए जिन आँखोंसे हम पवेत-जड्लल नद-नदी मरुभूमि और समुद्रको देखते हैं साहित्यको भी उन्हीं आँखोंसे देखना पढ़ेगा--यह भी हमारा तुम्दारा नहीं है--यह भी निखिठ सष्टिका एक भाग है । सादित्यसष्टि पू० ८७ सत्यको जहाँ मनुष्य स्थूलरूपमें अथात्‌ आनन्दरूपमें अग्तरूपमें प्राप्त करता हैं वहीं अपने एक चिह्को खोद देता है। वह चिह्न ही कहीं मूर्ति कहीं मन्दिर कद्दीं तीर्थ और कहीं राजधानी हो जातां है। साहित्य भी यही चिढ है। सौन्दयंबोध पू० ड गटर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now