भारत के महापुरूष भाग 2 | Bharat ke Mahapurush Bhag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.26 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर
पी
|
पर * महात्मा गौतम बुद्ध
फ्लू ड
होती है, ही दशा जराजीण क्जुप्यवी होती है। चृद्धत्च म-
दान शघु हैं। चद मजुप्यके घेग, पर प्रेम और वीर्य को नष्रपर
देता है। उसका माप्रमण होतेही रुप छिरुपमें और सुख दुःद
में पॉरणत हो जाते है। हे भाइयों ! इस शब्से सपने आपको
दच्ानेफी डेप्रा करो | जिस प्रव1र सरिताई, ग्रदाध्मे पड़ कर!
घुझफे घज्ू प्रर्यज् रूलग दिल्ग हो जाते है, उसी पर फार इस
सघसागर में पड़े हुए मनुप्यके रवजन उससे विलिग दो जाते है ।
एफ घार दियोंग हो जादेपर फिर कोई फिसीकों नषटीं पिलता ।,
मृत्यु सधपों न जारें पं पीच ले जाती है, अत: हैं. भाइयों !
मोह निद्राका त्याग करो । उठो, जाए़त हो | यद्दी अघसर है ।
करसच्य पालन करो !”
सिद्धाथ प्रभातीका भाच सम गये । मानो उन्हें परमा-
ह्माचे सदेत कर दिया | उनके नेप्रोमें जल भर आधा । पे
यह त्याग करनेफे लिये उत्सुक हो उठे ।. हृदयमें घैराग्य स्फुरित
हो उठा। वे अपनेकों संसारफे मोह जालसें उर्का बुआ देश्स
ने लगे । उनका चिश्त दिन्तित दो उठा] बह एफ घारगी थि-
चार सागरमें निमस हो गये ।
पतिकी यदद दशा देख, यशोधरा ब्याकुल दो उठी । उसेः
सिद्धाथ॑के दिसारोंका पता लग गया। उसने आ' क प्रकारसे
उन्हें समभाविकी द््टा की पररतु कोई फल न दुआ । सिद्धाथने
कहा,--'प्रिये! मैं मय संसारमें लीन रदना नहीं चाहता।
मजुष्यका जीवन दुः मय है । सभी सांसारिक सुझ अनित्य हैं
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