भारत के महापुरूष भाग 2 | Bharat ke Mahapurush Bhag 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bharat ke Mahapurush Bhag 2  by पं. शिवशंकर मिश्र - Pt. Shivshanker Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. शिवशंकर मिश्र - Pt. Shivshanker Mishra

Add Infomation About. Pt. Shivshanker Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
धर पी | पर * महात्मा गौतम बुद्ध फ्लू ड होती है, ही दशा जराजीण क्जुप्यवी होती है। चृद्धत्च म- दान शघु हैं। चद मजुप्यके घेग, पर प्रेम और वीर्य को नष्रपर देता है। उसका माप्रमण होतेही रुप छिरुपमें और सुख दुःद में पॉरणत हो जाते है। हे भाइयों ! इस शब्से सपने आपको दच्ानेफी डेप्रा करो | जिस प्रव1र सरिताई, ग्रदाध्मे पड़ कर! घुझफे घज्ू प्रर्यज् रूलग दिल्‍ग हो जाते है, उसी पर फार इस सघसागर में पड़े हुए मनुप्यके रवजन उससे विलिग दो जाते है । एफ घार दियोंग हो जादेपर फिर कोई फिसीकों नषटीं पिलता ।, मृत्यु सधपों न जारें पं पीच ले जाती है, अत: हैं. भाइयों ! मोह निद्राका त्याग करो । उठो, जाए़त हो | यद्दी अघसर है । करसच्य पालन करो !” सिद्धाथ प्रभातीका भाच सम गये । मानो उन्हें परमा- ह्माचे सदेत कर दिया | उनके नेप्रोमें जल भर आधा । पे यह त्याग करनेफे लिये उत्सुक हो उठे ।. हृदयमें घैराग्य स्फुरित हो उठा। वे अपनेकों संसारफे मोह जालसें उर्का बुआ देश्स ने लगे । उनका चिश्त दिन्तित दो उठा] बह एफ घारगी थि- चार सागरमें निमस हो गये । पतिकी यदद दशा देख, यशोधरा ब्याकुल दो उठी । उसेः सिद्धाथ॑के दिसारोंका पता लग गया। उसने आ' क प्रकारसे उन्हें समभाविकी द््टा की पररतु कोई फल न दुआ । सिद्धाथने कहा,--'प्रिये! मैं मय संसारमें लीन रदना नहीं चाहता। मजुष्यका जीवन दुः मय है । सभी सांसारिक सुझ अनित्य हैं




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now