आधुनिक हिंदी साहित्य | Adhunik Hindi Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० प्राघुनिक हिन्दी साहित्य विद्लेंषघण श्ौर प्रकर्ष आर कल्याणकारी सौन्दय व्यक्त हुआ है । कथावस्तु का विशेष श्राग्रह न होते हुए भी कामायनी में कवि ने भारतीय साहित्य के शझ्रादि पुरुष मचु को कथा नायक बनाया है । श्रद्धा नायिका के रूप में है । मनु श्रौर श्रद्धा के साहचये से मानवता का विकास दिखाया गया है । संपूर्ण कामायनी सहाकाव्य में-- चिता आ्राशा श्रद्धा काम वासना लज्जा कर्म ईर्ष्या इड़ा स्वप्त संघर्ष निर्वेद दंत रहस्य झानन्द--पत्द्रह सगे हैं । ये सर्ग मानव मन की विभिसत वृत्तियों के विशद रूपक के रूप में वर्णित किये गए हैं । इसमें दाइवत शांति गौर श्रखण्ड झानन्द की श्राकांक्षा से उदबुद्ध मानवात्मा की चिरन्तन पुकार है मानव मन की जिज्ञासाश्ों का समाधान है । थुद्ध काव्य-कला की टृष्टि से कामायनी छायावादी युग की. सर्वश्रष्ठ रचना है। विचार-गांभीये भावसौन्दय कला-सौष्ठव तथा विषय गौरव के कारण हिन्दी साहित्य की यह अनूठी कृति है । कामोयनी में लज्जा के इस चित्र की भाँति प्रसाद संकल्पचित्र में श्रद्धा के रूप की व्याख्या करते हैं-- नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पग तल में पीयूष स्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में । भाँसु के भीगे अंचल पर मन का सब कुछ रखना होगा तुमको श्रपनी स्मिति रेखा से यह सच्धिपन्र लिखना होगा ॥ ईर्ष्या के जाग उठने पर मनु कह उठते हैं-- तुम अपने सुख में सुखी रहो मुक्कको दुःख पाने दो स्वतस्त्र मन की. परवदता महादुख मैं यहीं जपुगा महामंत्र । लो चला श्राज मैं छोड़ यहीं संचित संवेदन भार पुज। मुझको कॉटे ही मिलें घन्य । . हो सफल तुम्हें ही कुसुम कुज ॥।




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