Book Image :  - Kalyaan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रू. यू्णंमदः पूर्णमिद यूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यले । मूगेस्य. पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ वेशुवादनश्लीलाय गोपाठायाहिमर्दिने । काठिन्दीकूठठीठाय ठोलकुण्डलधारिणे ॥। च्लवीनयनाम्भोजमालिने चत्यश्वालिने । नमः अरणतपाठाय श्रीकृष्णाय नमो नमः )। संख्या १ वर्ष २३ गोरखपुर, सौर साथ २००५, जनवरी १९४९ फदिड&5&8र65555वशरडडह5हसडहड रह '2858:ू>स28552528555: ट गा भ [| शरणागात ) यो न्रह्माण विद्धाति पूर्व यो वे वेदाधअ प्रहिणोति तस्मे । 1) तर ६ देवमात्मचुद्धिमिकाशं श्रुमूक्षुवें शरणमहं अपये ॥ हा (श्वेताश्वतर० ६ 1 १८) । जिन. परमेश्ररमे ब्रह्माको सर्वप्रथम उत्पन्न किया । ण जिनने उनको अमित ज्ञानका आकर अपना वेद दिया ॥ श) आत्मबुद्धिकि विमठ विकाशाक अखिछ विश्वमे रहे विराज | मैं मुमुझ्ु उन परम देवकी शरण श्रदण करता हूँ आज ॥ ष्ि ननणणशफ्ेफ्रेडकेाााणा श (2.55 55ब्उ:ह82288-बबहड52रघ-स्ाघ28258ब28285855डहदहघ822डर्डारी] उ० झँ० शा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now