यामा | Yama

Yama  by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 यम न हो और ज्यादा गे न हो खूब हुवा आये-जामे ऐसा सोने का ठण्डा कमरा गाढ़ी नींद मगर लम्बी नहीं और तड़के सबेरे का उठना ठण्डे पानी में या बौछार में नहाना साधारण भोजन मसाले का छोंक बधघार कुछ नहीं । अच्छी किताब जिसमें बीरता और पराक्रम की गाथा हो । खूब सारा काम और खुली हवा में खेल। लड़के-लड़कियों की सह-शिक्षा ओर अन्त में जल्दी विवाह समझो बीस-बाईस वर्ष में क्योंकि आखिर कुल शील की लड़की उस अवस्था तक सहज सह सकती है । इंजिनियर लोग बोले-- बह सब हम जानते हैं ये बस ऊपर के मरहम हैं जड़ की बात का हन वे नहीं देते । सवाल है कि यौन तृप्ति की जगह आप क्या देंगे ? इस पर मेरा मन बिगड़ा । मैंने उन्हें सुना दिया कि टाल्सटाय महान ने एक बार ऐसे वक्‍त क्या कड़ा जवाब दिया था । एक मौके पर रूसी बौद्धिकों की एक बड़ी सभा हुई । स्वभावत वहां खामी चख-चख और ले दे रही । टाल्सटाय अृंझलाकर अपने समय की सरकार को बुरी-भली सुना रहे थे । उस समय एक युवक ने उनसे सवाल किया-- अच्छा लियो निकोलोविच मान लिया आप सही हैं शासन बिगड़ा है और निकम्मा है। यही आप चाहत हैं तो चलिए हम उसे गिरा देंगे लेकिन कृपया उसकी जगह आप हमें दीजिएगा कया ? टाल्सटाय ने कटकर जवाब दिया । थोडी देर को मानिये कि--परमात्मा न करे आपको कोई बुरी बीमारी हो गई आप मेरे पास आते हैं और पूछते हैं यह क्या मुसीबत मुझे लग गई है और मैं कया करूं । मैं कहता हू तुम बीमार हो और यह तुम्हे बीमारी है । अब करो यह कि बिना देर किये डाक्टर के पास जाओ और लगकर पूरी तरह इलाज करो । लेकिन तुम तुरस्त उलटकर मुझे पूछते हो अच्छा मैं जाता हू डावटर के पास और टलाज से अपने को अन्छा भी कर लूगा लेकिन सिफलिस की जगह पर आप सुझ-




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