कल भी सूरज नही चढ़ेगा | Kal Bhii Suuraj Nahiin Chadhegaa

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Kal Bhii Suuraj Nahiin Chadhegaa by जसवंत सिंह विरदी - Jaswant Singh Virdiसुरजीत सिंह सेठी - Surjit Singh Sethi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डायर बुदबुदा रहा है - किचलू किचलू । कितने ही किचलू । वह इशारा करके बता रहा हैं कि उसे अनगिनत किचलू दिखाई दे रहे हैं। परंतु जिस दिशा में वह इशारा कर रहा है उधर तो एक-दो ही हैं । और कुछ भी नहीं । वहाँ कोई किचलू नहीं है । कोई हातो नहीं है । डायर का भ्रम है । वैसे डायर एक बहादुर निडर और निर्दयी व्यक्ति समझा जाता है परंतु आज वह अपने काल्पनिक भय से ग्रस्त है । हर राहगीर उसे किचलू दिखाई दे रहा है । अब दो पहलवानों जैसे व्यक्ति उसे दिखाई पड़ते हैं - उन्होंने कुरते और तहमद (बड़ी धोती) पहनी हुई हैं । ये कौन हैं ? उसे वे ह-ब-हू बग्गा और रत्तू जैसे लगते हैं जिनके बारे में कल इरविंग ने बताया था । बग्गा और रत्तू । इन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर नेशनल बैंक पर हमला किया था । बेचारे स्टीयूर्ट और स्कॉट को मारकर इमारत में आग लगा दी थी । वे बेचारे इमारत के साथ ही जल गए थे । ये दोनों जो सामने दिखाई दे रहे हैं यही उन्हें मारने वाले थे । ये दोनों । इनके साथ और भी थे - अब्दुल मजीद और राय राम सिंह । ये हिंदू मुसलमान और सिक्ख मिल गए थे । इन्होंने मिलकर यह काम किया था । ये सामने से आ रहे दो पहलवान थे - बग्गा और रत्तू । ये किधर आ रहे हैं ? ये क्यों आ रहे हैं ? ये आजाद कैसे घूम रहे हैं ? इन्हें किसी ने गिरफ्तार नहीं किया ? हिंदुस्तानियों के शत्रु भी हिंदुस्तानी ही हैं । हिंदुस्तानी को हिंदुस्तानी ही मार सकता है । डायर का विचार है कि सदा हिंदुस्तानी के हाथों ही हिंदुस्तानी को मरवाना चाहिए । इसी में बुद्धिमोनी है । यही दूरदृष्टि है । यही राजनीति है । और अब इसके आगे-आगे चल रहे हिंदुस्तानी सिपाही उनको रत्तू और बग्गा दिखाई देते हैं । सफेद कुर्ते और तहमद वाले । कुछ देर पहले बग्गा और रत्तू लगने वाले व्यक्ति न जाने कहाँ अदृश्य हो गए हैं । उन्होंने सिपाहियों की वर्दी पहन ली है और सिपाहियों में ही मिल गए हैं । सभी सिपाही स्त्तू और बग्गा बन गए हैं । सिपाही मार्च कर रहे हैं । 15




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