सुभाषित - सप्तशती | Subhashita-saptashati

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Subhashita-saptashati by मंगलदेव शास्त्री - Mangaldev Sastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मातृथूमि का ्रमिनन्दन (वैदिक पद्धति में ) सा नो माता भारती भूविभासताम हमारी विश्व-्रसिद्ध मातृभूमि भारत देदीप्यमान हो 14 मेर्म॑ देवी मपुमा सर्पपत्ती तिझ्नो भूमीददृपूता द्याठपस्थात्‌ । कामानू जुग्प विप्रकपस्पसस्मों मेपों भ्र ्ठां सा सदाज्स्मासु बप्यात्‌ ॥ स्वर्ग-टोग से मानो उतरकर तीनो छाफा का रिव्य माधुय से मरनवाती इन्फ्ति बाममामों को दनसाली तथा दु्-दारिदय (मलदमी ) को टटान वाछी देवी स्वरूपिणी भारत-माता सद्विचारा को सापना में उमारी सहायम हो । प्र सर्वे देदा. उपमिपदद्स सर्वा घमप्रन्पाइद्यापरे मिपयों पस्पा । मुत्योर्मस्पनिमृत॑ थे. दिशम्ति बे सा नो माता भारतो भूविभासतामु ॥ ममुप्या को मृस्यु मे हटारर अमृत की प्राप्ति था उप रनपाठे समस्त व उपनिपद्‌ तथा भय (वोद्ध जन माटि) पर्म-प्रन्य जिगग निधि-स्वरूप हू यह विसयप्रसिद् हमारा सामृमूमि भारत देदीप्पमान हा ।




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