दिनचर्या | Dincharya

Dincharya by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विनखयोंर,. श्द यदि उपलब्ध हो सके तो झुद्ध रेशमी वर पहनकर एवं शरीर ढककर सन्ध्या-वन्दनादि करना चादिये । इस समय मस्तक और डरीरपर चन्दन छगाना उत्तम है । सदा साफ कपड़ा ही पहनना उचित है | सिरके बालोंको प्रति- दिन कडदेसे साफ कर ढेना चाहिये, परन्त॒ सुन्दर दीखनेके लिये बाउोंको टेढ़े-सीचे सजाना अच्छा नहीं । फैशनके दिये शरीरकों सनानेमें ज्यादा '्यान्न न रहना ही अच्छा है । यदद वात सदा याद रखनी चाहिये कि कपड़े शरीर-रक्षाके लिये हैं, बाबूगिरी करनेके छिये नहीं । विदेशी कपड़े हमारे देशकी जख्वायुक्ते अनुकूठ नहीं हैं; अतः इन सब्र कामोमें अन्ध-अनुकरण अच्छा नहीं 1 रे. ईश्वरोपासना-घुठे हुए पत्रित्र वख पहनकर सन्ध्या- चन्दनादि करना कर्तव्य है । द्विजातियोंके नित्पदृत्य सन्प्यादिें जो सुम्दर-सुन्दर वेदमन्त्र हैं, उनका अर्थ समझकर पाठ करनेसे मनकी ग्छानि दूर हो जाती है । करि्तु अर्थ न समझकर उसके उद्देद्यकी उपलब्धि किये बिना, तोतेको नाई केवठ रटनेपर वे रस- दीन हो जाते हैं और उनका ययार्थ उदेस्य व्यर्ष हो जाता है 1 सन्व्यामन्त्रोंका अर्थ विद्येप कठिन नहीं है; सदन हो. सबकी समझमें आ सकता है# भर _ क्र कुछ सन्ध्यामस्वीा रदस्य और अर्य इस मरार देर रे-धूपसे जा दुआ मनुष्य जिस प्रकार इक्षके नीचे जावर तापसे ूट जाता है, स्नान करनेपर जिस प्रकार दारीरिक मदसे मुक्त दुआ जात! है, घी जिन प्र स्कारदारा पत्रिघ्र दोता हे, उसी प्रकार जल मुझको पापसे मुक्त कर दे । <




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