काया की माया | Kaya Ki Maya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29.07 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अनिरुध्द पाण्डेय : Anirudhd Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२१ काया को साधा बिल्वसाला ने हँस कर परिहास किया क्या बहन जी पर भी नहीं ? वावू रूपकिशोर ने एक दीर्घ॑ नि इवास छोडते हुए कहा वह तो रानी तुम्हारी ही तरह तुमसे पहले से ही जीवन से विधी है । यदि सच मानों तो इसका एक प्रकार से अब मुझे अफसोस है । काण मै पहली पत्नी की मृत्यु के समय यह जान पाता कि तुम मेरे जीवन में कभी उदित होओगी और मेरे पवित्र प्रेम को स्वीकार करोगी तो कभी फिर मै विवाह ही नहीं करता । पर जो होना था तुमसे सिने पहले ही हो चुका था । वाबू रूपकिशोर के दुखी भाव को समझ कर बिल्वमाला उनकी जॉँघ के सहारे बेठ गयी और बोली मै जानती हूँ । हमारा-तुम्हारा सम्बन्ध पवित्र है और जन्म-जन्मान्तर के छठिए है। तुमने मुझे जीवन का अमृत-तत्त्व दिया है। वहन जो मेरी वडी है । मै उनके लिए कभी भी बुरा नहीं मान सकती । हम राजाओं मे चार रानियो तक सम्बन्ध बिलकल पवित्र माना जाता है। हमारे सरकार की अब भी तीन रानियाँ है । दासियो की तो गिनती नहीं । हा प्रेम पुलक से अपना तन-भार बाबू रूपकिशोर के ऊपर स्वच्छन्दता से ठोइते हुए रानी ने पूछा मेरी गाडी कव आ रही है बीमा के रुपये तो आ री गये होगे । रानी बाबू रूपकिशोर के गले मे अपनी बाहो की माला डाल उनकी आँखों में विचित्र उत्कठा से देखने लगी । बीसा के पचास हजार रुपये कल मैने बक में तुम्हारे हिसाब मे डाल दिये है । गाडी के लिए दिल्ली चलना पडेंगा । कब चल सकोगी ? यह लो बंक की रसीद । जब कहोगे दिल्ली चजी चलूँगी । तुम्हारे हुक्म के वर्गर क्या मैं कही जा सकती हूं? दिल्ली में कम्पनी को लिखा है । जवाब आ जाय तब चलने का तय करेगे। बिल्वमाला कार आने की प्रसन्नता से आविर्भूृत हो उठी । फिर सहसा किसी बात को याद कर बोली एक बार तुम गाडी ले कर पशुपति नाथ भगवान के दर्गन कर आया मेरी तुम्हारे लिए मनौती है । तुम भी तो चलोगी ?
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