पं. जगन्मोहन लाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ | Pandit Jagan Mohan Lal Shastri Sadhuvad Grantha

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Pandit  Jagan Mohan Lal  Shastri  Sadhuvad Grantha   by जैन विद्यायें - Jain Vidyayen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( री आमोजन की प्रायोजनो के समंध ही यह ध्तरंगा रही हैं कि पति जी आखिल भारतीय व्यक्तित्व होते हुए मूख्त. विषय एव मध्य अ्रदेसीय हैं। अत. इस आयोजन का आर्थिक पक्ष इसी क्षेत्र से समृद्ध किया जावे । सामान्यत,, ऐसे साहित्यक भायोजनों के लिये इस क्षेत्र का योगदान नगण्य ही रहा है । जहाँ विद्तु अभिनदन प्रथ जैसे ग्रथ में मध्य प्रदेश का आर्थिक योमदान शुन्यवद्‌ ही रहा है, वही प० सुमेरुघद्व दिव।कर प्रथ में यह १६०६ एव प० मौलाशचद जी शास्त्री के प्रथ हेतु मह २०% रहा । फिर भी, हमारी समिति को इस बात की प्रसन्नता है कि इस आयोजन हेतु हमे ८०% से अधिक योगदान दसी क्षेत्र से मिला है। भारत के अन्य क्षेत्रो से भी हमे योगदान मिला है । हमारे आयोजन के अनुमानित सत्तर हजार स० के व्यय के मुख्य मद प्रथ प्रकाशन ( लगभग प०,०००-०० ) और यात्रा व्यय (प्राय १०,००००-००) रहे हैं। आयोजन संबंधी जटिल स्थितियों को देखते हुए और काये को गति देने के लिये बैठकों एवं पश्राचार वे बदले व्यक्तिगत सपर्कों को ही वरीयता दी गई। यह आलोचना का विषय हो सकता है, पर समिति यह मानती है कि यही उसके लिये कार्यसाधक उपाय था । इसी कारण यह समव हो सका कि हमारा जटिल आयोजन अन्य सरलतर आयोजनी के समकक्ष समय में सम्पन्न हो पा रहा है जेसा सारणी १ से प्रकट है । इस आयोजन कार्य हेतु पडित जी से सबधित अनेक सस्थाओ विद्वत्‌ परिषद, बर्णी शोध संस्थान, स्पादाद महाविद्यालय काशी, परवार सभा, जबलपुर, जैन शिक्षा-सस्था, कटनी, अनेक ट्रस्टो ( बी ० एस० ट्रस्ट, सागर, एय० एस० ट्रस्ट, जबलपुर जैन ट्रस्ट, रीवा ), क्षेत्रो--कुडलपुर, पपौरा, खजुराहो, एव शिष्यों से सहयोग मिला है । दमोह नगर से सर्वाधिक सहयोग मिला । कटनी भी पीछे नहीं रहा । सेठ धमेंचद सरावगी जैसे सज्जनों ने परोक्ष जानकारी के आधार पर सहयोग दिया । बस्तुत यह कुण्डलपुर के बडे बाबा एव भ० सभवनाथ की प्रतिमा के नवोत्तरण का प्रभाव ही है कि “'पदे पदे विच्छिन्नशकु प्रतीत होने वाले इस आयोजन को पूणणेता मिल सकी । समिति का आय-व्ययक पृथक से प्रसारित किया जा रहा है । इस आयोजन का द्वितीय चरण, पग्रथ समर्पण समारोह, वुडलपुर क्षेत्र पर आचार्प श्री विद्यासागर जी के साल्िध्य मे जैन विद्या गोष्ठी के माध्यम रो सपन्न करने का निश्वय था । परतु अनेक विवशताओ ने स्थान- परिवर्तन के लिये बाध्य किया । हम सतना की महावीर दि० जैन पारमाधिक सस्था के आभारी हैं कि उन्होंने इस आयोजन को अपने यहाँ सपन्न कराने का पूर्ण उत्तरदायित्व लिया । इस आयोजन हेतु हमारे समन्वयक डा० जैन ने ८०,००० किमी० से भी अधिक यात्रायें की, ३०० से अधिक व्यक्तियों से सम्पकें किया और ३,५०० से भी अधिक पत्र लिखे । उनका श्रम और त्याम प्रशसनीय हैं । हमें लगता है कि उनकी तींब्र निष्ठा के बिना यह काय॑ सभंव नहीं हो पाता । उनके कारें साधक वचनों या व्यवहार से अनेक जन अन्यथाभावी दिखे हैं। पर हम जानते है कि उनका उद्देश्य ऐसा कभी नही रहा । हम इस स्थिति के लिये क्षमाप्रार्थी हैं और समिति की ओर से डा० जैन को कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं । अत मे हम सभी दातारों, लेखकों, विद्रदु समिति, स्वागत समिति एव प्रबंध समिठि, समारोह आयोजन समिति के सदस्यों, विभिन्न सत्थाओ ट्रस्टों एवं क्षेत्र समितियों को धन्यवाद देना चाहते हैं जिनके सहयोग के बिना समिति यह गुरुतर कार्य केसे कर सकती थी ? ग्रथ मुद्रण के नि्णेय के क्रांतिक क्षणों के हमारे सहयोगी श्री पी० के ० जैन और श्रीमती झमा जैन के प्रति समिति की कृतज्ञता मनोहारी ही होगी । इस अवसर पर अनेक लिपिकीय सहायकों को भी कँसे भुलाया जा सकता है ? मुन्ते धिश्वास है कि यह साधुवाद ग्रंथ विद्वतु वर्गे, अध्येता, अमुसघित्सु एवं समाज के प्रगतिशील विचारकों के लिये सारवान्‌ सिद्ध होगा । हमारे समग्र प्रयास में अपूर्णता एवं ज्रुटियाँ स्वाभाविक हैं। उसके लिये समिति की ओर से हम क्षमाप्रार्थी हैं । महावीर जयन्ती, १९९० “-मचंघ समिसि




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