पंचतंत्र एवं हितोपदेश का तुलनात्मक अध्ययन | Panchtantra And Hitopdesh Ka Tulnaatmak Addhyayan

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Panchtantra And Hitopdesh Ka Tulnaatmak Addhyayan by ज्योत्स्ना वर्मा - Jyotsna Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जे इसकी प्रत्सक विधा-चाहे सहाकाव्य हो चाहे नाटक चाहे धर्म घाहे दर्शन चाहे व्याकरण चाहे ज्योत्तिष चाहे आयुर्वेद चाहे संगीत और चाहे गन्थका प्य। मधका व्य में भी चाहे कथा काव्य। संस्कृत वाइ. मय की थे सभी विधाएंँ स्वयं में परिपूर्ण हैं। इनमें ते पुत्यैक का अपना-अपना पृवैक-पृथक महत्त्व है। कथा साहित्य तना प्राचीन है जितना कि मानव । मानव के साथ ही कथा का जन्म हुआ। कथा मौखिक सम मे वधोध्ुद्वी बनानी दादो काकी नाना दादा काका । की कहानी के सप में समातन से चली आ रही है। माँ खिक-साहित्य से मुक्त होकर कब लिपिव& हुई हसमेंमतमभिद हो सकता है किन्तु कथा की प्राचीनता तथा आधिर्भीति मैं पुत्नवाचक घपिहम नहीँ लगाया जा सकता। पंँघतन और हितीपदेश को कथाएं विश्वरविदित कधाएंँ हैं। विश्व के सा।हत्य ने इनसे प्रेरणा ली है और इनका मुल्यक्न किया है। कथा साहित्य के अंतर्गत पंचतंत्र तथा. हितोीपदेश को कहा नियोँ से तभी परिचित हैं किन्तु इन दोनों ग्न्थों का अभी तक साहित्यिक मुल्याकिन नहीं हुआ और न ही दोनों का गहन तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। अतरव इस दिशा में तुलनात्मक सा हि र्थथिव मुल्याकिन के लिये मुक्ष जैसे अल्पज्ञ ने किसीतरह साहस बटोर कर तथा शुभ संकल्प लेकर इसे शी हक शोध का प्रतिपाध विधय बनाथा। केधा का स्वरुप- लव िविधय ता तर तपतात ततपता अपरतवग सपसतग स्तर रमतर मफिका पूर्व चैदिक सा हित्थ में सुकत स्व गाथा बब्दों का प्रयोग कथा के स्प मैं किया जाता था। अधथर्ववेद तथा अग्वेद संहिता सें तथा वृहद्देवता में कुमश गाथा स्व सुफ्त शब्दों का प्रयोग प्राप्त है। शौनक-सुक्‍त को सम्पूर्ण झधिवाक्य स्वीकार करते हैं- सम्पूर्ण जूषिवाक्य तु सुक़्समित्यभिधी यहे। मा लबकालेल अमनकाकान कमकाबन न्कान एन गा तपाफराणा नमक वर वि मामयाव बगवपए क था काला बल वा वकय कहसपर रवाका का सत्य या सवार का कहर मना समर राग वागं गा कमलालनाण ।- व॒हट्देवता - 1 15




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