साहित्यलहरी सटीक | Sahitya Lahari Satik

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Book Image : साहित्यलहरी सटीक - Sahitya Lahari Satik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संसि मुंष मींन नेंत्र देष रुपज़त कर. सदित अनेंदित भई या पद में उप मान ते उपमेय बोध किये अरु चितचाही बात देव के मुदित भइई त मुदिता नाइका ताकों लच्छन । ं दब दोहा. रूप .कांत उपंमान ते होइ . बोध उपभेय । . चितचादी छषि बात ते युदिता ही को भेय ॥ १ ॥ शी . उक्ति गनाव॥ १५ ॥। या उक्ति नाइका को के गिरिजापति शिव पितु ब्रह्मा पितु कमल पितु समुद्र . ते सौ गुनी देष परत हैं ससिसुत बुध ताते चोथो सनि पिता सूये पुत्री... जमुना आजु कहा चित में चाहत है सूय सुत करन माता कुंती बॉघ जन आदि वरण ते कुंज का नास कर हैं सूर के प्रभु के मिलाप के हित ( हेतु ढ ई . समुद्र त सा गुनी जमुना मे ) अतिउक्ति अरु कुंज गिरवे कारन टुप होइवों ज सा कारण के प्रथम भयो ताते. अक्रमातसयउक्त अर जमुना बढत मात्र दुष भयाो ताते चपलातंसंउक्ति अरु सहट कुज मं रहो ताकों नास देषत दुष पायों ताते अनुसना नाइका लच्छन ।. न . दोहा--कारज कारन भाव ते अक्रमात सब उक्त । ..... विनसत देष सहेट को अलुसेना की जुक्त ॥-१ 0१९0




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