चारण | Charan

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Charan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ण लहरके। सात समुद्रभी न राक सके, उससे भारतमी अछुता न रहा | संयेगेंने भी प्रऊतिका साथ दिया । इस्ट इण्डिया कंपनी-वन्द विलायती व्यापारियिसके णुट-ने शासन चलाकर बटिश सारतीय जनताकी उस पुराने पाठकी घारणाकेा तेाड वहाइ । कितु राजपूताने की प्रज्ञा 'लेाकतैन्रके स्पष्ट चातावरणसे दूर थी। आज़ करके दाब्दामें राजपूतानेका वह अंधेरा युग राजाओंके लिये गनीमत था । जिस लहरके सामने हजारे केसकोी दुरीभी तुच्छथी चद पड़ासमें या यें कहे हमारे घरके द्वारपर आकर कुंडोत केसे हाती। फिरमी दटीश भारत आर राज स्थानमें अन्तर वनाही रहा है और चह है राजा ओर प्रजाका साचिध्य आर तजन्य आत्मीयमाव-अपनापन-के सेंस्काराका अश्वित्व, इतना सचहैकि लेागेंकि हृदयमें घुसकर ट्रेने पर वह धघर्मसभ्पुर राजभक्ति तो अब शायदही कहीं मिलेगी जवानी जमपाखर्च दूसरी वात है प्रेस जार प्रभाव, ये दे भाव दिला ये राज सत्तादी चुनियादमे प्रधान ' है। उनमेंसे प्रेमता राजा आर प्रज्ञाके स्वार्थमे जबसे एकता मिटी तभीसे गया, “'प्रमाच थी गया। उधर चटिश भारतसे भी गया, इघर देशी राज्येंसि भी गया, चटिश भारतसे जानेका कारण हैं. सपय समय पर कियेगये असत्य बादाका. घटरफाट असव्य सदा निर्वछताका प्रतीक हाताही हे-एवं साश्राव्य शाहीका, अपनी निःशस्र तथापि... अहिंसा और सत्यके बसे. वढीमान.. प्रज्ञापर घार.. दमनका नाच बताकर थक बेठना और अन्तर्यष्दीयर घटनाओंमें दूघू * नोतिपर विवश हाना। इघर देशी राज्यामें कारण हुआ, स्वराज्यकी भावना अखंड भारतमें समान रुपसे फेलते जानेके अतिश्क्ति, अनेक राज्ञा महाराजा साम्राउय सत्ताके द्वारा-नौकरशाहीकी इच्छा पर-राज्यब्युत, अधिकार च्युतत करा दिये . जाते और अग्रज अधिकारस्यिके आनेपर उन्दे शिझानेके लिये की जानेवाली दौडध्ूपके। प्रत्यक्ष देखनेसे प्रज्ञाके हृदयमें प्रथम कट्पित राजाओका वह स्वतंत्र एवं समर्थ रूप न रहना इसके लिये राजालाग सिर्फ उतनेही दाषी है जितनाकि घछुडदौडकी शिकार ( छा इघिंतिंपष्ट ) में सूअरके। अपनी रकावके नीचे घुसनेका मेाका देकर स्वयं माराजाने बाला शिकारी सचार। फिरमी यदि राजगण देश कालासुसार दूरदशितासे प्रेम सहित अपनी प्रज्ञके साथ जनहित मूख्क सत्य व्यवहार करेंते शाज्याका जींवन बढनेकी आशा रखी जा सकती हैं ! अमीतक उन्होंने अपनी प्रजञाके विश्वास और आत्मीय भावनाके। सर्चथा खे। नही दिया है! केटाके बर्समान महाराव उस्मेद खिहजी एवं ऐसेही कुछ अन्य नरेश इस कण तक इसके प्रमाण है ! :क्रपशः . या




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