हिन्दी उर्दू और हिन्दुस्तानी | Hindi Urdu And Hindustani

Book Image : हिन्दी उर्दू और हिन्दुस्तानी - Hindi Urdu And Hindustani

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पद्मसिंह शर्मा - Padmsingh Sharma

Add Infomation AboutPadmsingh Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हिन्दी उद श्रौर दविन्दुस्तानी ह संकते ।क दविन्दुस्तान एएक बहुत पड़ा मुल्क--महादेश है वह सच दिल्‍ली के द मुहल्लों में नहीं समा सकता । किसी करामात से यद्द नामुमकिन बात मुमकिन हो भी जाय--सारे हिंत्दुस्तान के सब उद बोलनेबाले उद -ए- मुश्रल्ला श्रौर उसके पास के मुदल्लों में किसी तरह समा भी जाँय तो भी इस हालत में वह नजीब और शरीफ़ की उस तारीफ़ में तो दाख़िल न हो सकेंगे जो इन्शा ने की है झ्रहले ज़बान या उद की फ़साहत के फ्रे सले इन्शा ने इरशाद फ़रमाया है-- लेकिन असलश शतस्त कि नजीब बाशद यानी पिंद्रो मादरश. अज देदली बाशन्द दाखिल फ़ु्तदा गत । लिन के हमर दी फीट जलकर दी वन कि फिर ना पड छजन््छ ु&ि उदेदी नि 3 यानी मुस्तनद श्रौर सह्दी उर्द॑ उसी की समझी जायगी जो नजीब ( कुलीन ) दोगा श्रर्थात्‌ जिसके माँ बाप दोनों दिल्ली के बाशिन्दे हों उसी का शुमार फ़सीहों में होगा | छू उद के धनी तो मौलाना हाली को भी ( जिनकी सारी उम्र देहली में रहते बीती थी और ग्रालिब और शेफता जैसे बाकमाल बुज्जर्गा के सत्सज्ञ और सोसाइटी में रहने का जिन्हें सिरन्तर सौभाग्य प्राप्त हुआ था और जो स्वयं एक आदरशे श्रौर उच्चकोटि के क्रान्तिकारी कवि थे सिफ़े इस क़सूर के कारण कि उनका जन्म दिल्ली में न होकर पानीपत में हुआ था यानी वह दिल्ली के रोड़े न थे )-- उदू-ए-मुअ्ह्ला का मालिक या फ़सीह. और टकसाली उदूं लिखने बाला नहीं मानते थे । हाली ने दिल्ली की शाइरी का तनउजल शीषंक . कथिता में जो यहाँ उद्ध त की जाती है इसी दुर्घटना का उल्लेख किया है जो सुनने लायक़ है-- इक दोस्त ने हाली के कहा अज़ रहे इन्साफ़ करते हैं पसन्द अददले-ज़बां उसके सुखन को । चन्द अदले-जबाँ जिनको कि दावा था सुखन का बोले कि नद्दीं जानते तुम शेर के फ़न को ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now