देशी शब्दकोश | Desi Sabdakosa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संपादकोरय॑ भाषा भाषा विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम है । संसार के कोने-कोने मे निवास करने वाले मनुष्य किसी न किसी भाषा के माध्यम से अपने विचारों का आादान-प्रदान करते है । भौगोलिक कारणों से मनुष्यों की भांति भाषा के भी अनेक भेद पाए जाते है । महाभारत मे इसका स्पष्ट उल्लेख है । विद्वानों के मत से वर्तमान मे १००० से अधिक जीवित भाषाएं प्रचलित है । इस विषय मे सेकड़ो पुस्तकें भी प्रकाश मे था चुकी है । ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय आयेंभाषाओ को तीन कालों मे विभक्त किया जा सकता है-- प्राचीन भारतीय आयं भापा काल--इसमे वदिक एवं लौकिक संस्कृत आती है । मध्य भारतीय भायं भाषा काल--इससे पालि प्राकृत एव अपभ्नंश भाषा का समावेश होता है । आधुनिक भारतीय आयंभाषा काल--इसमे हिन्दी गुजराती मराठी उड़िया बंगला असमिया तेलगु कन्नड़ तमिल आदि भाषाएं माती है । प्राकृत-- प्रकृति शब्द के दो अर्थ है--स्वभाव और जनसाधारण । इन जर्थों के आधार पर प्राकृत शब्द के भी दो अथं समभझ्े जा सकते है-- १. जो प्रकृति|स्व भाव से ही सिद्ध है वह प्राकृत है । २. जो प्रकृति/साधारण लोगों की भाषा है वह प्राकृत है । समहाकवि वाक्‍्पतिराज का अभिमत है कि जैसे पानी समुद्र मे प्रवेश करता है और समुद्र से ही वाष्प के रूप मे बाहर निकलता है । ठीक वरेसे ही सब भाषाएं प्राकृत मे प्रवेश करती है भौर इसी प्राकृत से सब भाषाएं निकलती है । इससे स्पष्ट है कि प्राकृत के आधार पर ही संस्कृत भादि का १. महाभारत शल्यपर्वे ४४1€७ ९८ चानावमंभिराच्छन्ता नानाभाषाश्च भारत । कुशला देशभाषासु जल्पन्तोधन्योन्यमीश्वरा ॥। २. गउडवहों £ ३ सयलाओ इसा वाया विसंति एत्तो य णेंति वायाओ ॥ एंति समुद्द चिय णेंति सायराओ च्चिय जलाइं ॥ चि नै नशा




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