एक औरत का चित्र | Ek Aurat Ka Chitra

Ek Aurat Ka Chitra by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
एक औरत का चित्र २४५ टाउशेट के पति पहले की तरह बैठ गए । नहीं उससे पहले वे डिनर के लिए आएंगी सिस आचंर बोली आठ बजे । फिर रेल्फ की तरफ देखकर उसने मुस्कराते हुए कहा तुम पौने सात बजे जाना भूलना नहीं । लड़का खुशकिस्मत है। बुड्ढा बोला । फिर अपनी पत्नी की भांजी सें उसने कहा तुम बंठो--थोड़ी-सी चाय ले लो । मुक्त अपने कमरे में पहुंचते ही चाय मिल गई थी लड़की बोली । फिर अपने सम्मानित मेजबान पर आंखें जमाए हुए उसने कहा आपकी सेहत के बारे में जानकर मुभे अफसोस हुआ । मैं बुड्ठा आदमी हुं माई डियर बुढ़ियाने की मेरी उम्र ही है । पर तुम्हारे आ जाने से मेरी सेहत बेहतर हो जाएगी । लड़की आसपास देखने लगी थी--लॉन के बड़े-बड़े पेड़ों को सरकण्डों के पीछे रुपहले टेम्ज़ को और उस पुराने घर को । पर यह सब देखते हुए सामने के व्यक्तियों से उसकी निगाह हटी नहीं थी--इस तरह एक साथ चारों ओर नजर रख याना उस लड़की के लिए अस्वाभाविक नहीं था जो उत्साहित होने के साथ- साथ काफी समभदार भी थी । उसने बैठकर कुत्ते को परे हटा दिया था गोरे हाथ जुड़कर उसकी काली पोशाक पर आ गए थे । गरदन उसकी तनी हुई थी आंखें चमक रही थीं । जिस सजगता के साथ वह आसपास का जायज़ा ले रही थी उसीके अनुसार उसका लचकीला जिस्म सहज भाव से इधर या उधर घूम जाता था । जायज़ा वह बहुत कुछ ले चुकी थी यह उसकी खुली हुई और सधी हुई मुस्कराहट से स्पष्ट था मैंने इतनी सुन्दर जगह आज तक नहीं देखी । जगह सचमुच अच्छी है मिस्टर टाउदेंट ने कहा । तुमपर इसका कसा प्रभाव पड़ रहा है यह मैं सोच सकता हूं । मैं भी इस अहसास से गुजर चुका हूं । पर तुम खुद बहुत सुन्दर हो । उसके स्वर में मज़ाक का खुरदुरापन न होकर एक कोमलता थी जिसमें इस अहसास की खुशी शामिल थी कि बड़ी उम्र होने से उसे ऐसी बात कहने का हक हासिल है--एक युवा लड़की से भी जो कि शायद ये दाब्द सुनकर सकपका जाती । यह लड़की कितना सकपकाई इसका अंदाज़ा लगाने की ज़रूरत नहीं । वह दारमाकर उठी --उसके भाव में प्रतिरोध बिलकुल नहीं था--और बोली हां




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now