ब्रह्मविलास | Brahm Vilas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.58 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शुतअशेत्तरी, २५
कोटि उपाय करो कोउ मेदसों; शरीर गहें जठ नेक न पीत ।
तेसें सम्यकवत्त गई गुण, घट घट मध्य एक नयनीत ॥ ९९ ॥
सिद्धसमान चिदानंद जानिके, थापत है घटके उर बीच ।
चाके गुण सब बाहि छगावत, और गुणदि सब जानत कीच ॥
ज्ञान अनेत चिचारत अंतर, राखत हैं जियके उर सींच |
एऐसें समकित शुद्ध करतु है, तिनतैं होवत मोक्ष नगीच ॥ ९३॥
कवि,
निशदिन ध्यान करो चिहचे सुज्ञान करो, कर्मको निदान करो
आतिं नाहि फेरिकें। मिथ्यामाति नाश करो सम्यक उजास करों;
धर्मकों अ्रकाश करो शुद्ध दृष्टि देरिकि ॥ ब्रह्मकों बिलास करो,
आतमार्नवास करो; देव सब दास करो महामोद जरिकें। अनुभो
अभ्यास करो थिर्तामें वास करो, मोक्षसुख रास करो कहूँ
तोहि टेरिके ॥ ९४ ॥
जिनके सुर्दाष्ट जोगी परणुणक भए त्यागी, चेतनसों ठव ठागी
साभी आंति भारी है । पंचमददात्रतघारी जिन आज्ञाके बिहारी
नस मुद्राके अकॉरी धर्मद्ितिकारी है ॥ शशुक अहारी अद्ाइंस
मूल गुणघारी, परीसह सहें मारी परउपकारी है । परमेघम धनघारी
सत्य शब्दके उचारी, ऐसे मुनिराज ताहि. बंदना हमारी
है॥ ९५ ॥
जुम थ अशुभ कर्म दोऊ सम जानत है, चेत्तनकी धारामें
अखंड गुण साजे हैं । जीवद्रव्य न्यारो उखें न्यारे लखें आठों कर्म
पूरबीक बंघतै मठीन॑ केहें ताजे हैं ॥ स्वसंवेग ज्ञानके प्रचानतैं अ-
चाधि वेदि प्यानकी घिशुद्धतालों चढ़े केई बाजे हूं। अंतरकी इृष्टि-
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