ब्रह्मविलास | Brahm Vilas

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Brahm Vilas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शुतअशेत्तरी, २५ कोटि उपाय करो कोउ मेदसों; शरीर गहें जठ नेक न पीत । तेसें सम्यकवत्त गई गुण, घट घट मध्य एक नयनीत ॥ ९९ ॥ सिद्धसमान चिदानंद जानिके, थापत है घटके उर बीच । चाके गुण सब बाहि छगावत, और गुणदि सब जानत कीच ॥ ज्ञान अनेत चिचारत अंतर, राखत हैं जियके उर सींच | एऐसें समकित शुद्ध करतु है, तिनतैं होवत मोक्ष नगीच ॥ ९३॥ कवि, निशदिन ध्यान करो चिहचे सुज्ञान करो, कर्मको निदान करो आतिं नाहि फेरिकें। मिथ्यामाति नाश करो सम्यक उजास करों; धर्मकों अ्रकाश करो शुद्ध दृष्टि देरिकि ॥ ब्रह्मकों बिलास करो, आतमार्नवास करो; देव सब दास करो महामोद जरिकें। अनुभो अभ्यास करो थिर्तामें वास करो, मोक्षसुख रास करो कहूँ तोहि टेरिके ॥ ९४ ॥ जिनके सुर्दाष्ट जोगी परणुणक भए त्यागी, चेतनसों ठव ठागी साभी आंति भारी है । पंचमददात्रतघारी जिन आज्ञाके बिहारी नस मुद्राके अकॉरी धर्मद्ितिकारी है ॥ शशुक अहारी अद्ाइंस मूल गुणघारी, परीसह सहें मारी परउपकारी है । परमेघम धनघारी सत्य शब्दके उचारी, ऐसे मुनिराज ताहि. बंदना हमारी है॥ ९५ ॥ जुम थ अशुभ कर्म दोऊ सम जानत है, चेत्तनकी धारामें अखंड गुण साजे हैं । जीवद्रव्य न्यारो उखें न्यारे लखें आठों कर्म पूरबीक बंघतै मठीन॑ केहें ताजे हैं ॥ स्वसंवेग ज्ञानके प्रचानतैं अ- चाधि वेदि प्यानकी घिशुद्धतालों चढ़े केई बाजे हूं। अंतरकी इृष्टि-




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