श्रीमान हनुमान जी का जीवन चरित्र | Shreeman Hanuman Ji Ka Jeevan Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ ) कि परे माणु एति के माणु पखरू शरीर रूपी रिजर से उष गये हैं यद देखते ही तारावता सिर पीट पीट कर दुदह देने खगी) पति मेम ने उस के हृदय के भीतर श्रम ना दी शोर निराशा शपना मवल वेग दिखाने लगी अनु पाद उपडने लगा लज्जा दूर भाग गई दुपट्टा शिर से उतर कर कंधों पर घा पड़ा नग्न सिर दो मृतक पति से लिपटगड । तारा की यह दशा शरीर बाली को सत्य शय्या पर लेटे देख छुग्रीव के मन की घाग पलट गई श्ौर श्रात्त मेम ने अपना जोश श्रकुरित कर दिया घौर यडषयक उस का दिल भी घड़कनते लगा हृदय फटने खेगा निराशता निदे- यत। को कम्पायमान करने लगी तब उस वास्तविक समा चार विदित इुश्या और कहने खगा हि दाय क्या था अर क्या दोगया । परन्तु इस समस्त शापार का मुख्य कारण श्राप ही था अतः इन सच विचारों को झापने मन हो मन में दपन कर गया अश्वपात वश्डिमुख छो उस को चैय्य दिलाने के स्थान भन्तमुखे हो चिन्ता श्रम पर पह कर दुदय छेश को रेल की स्टीम की भान्ति निकाल मस्तीष्क की शोर चढ़ लगे शोर इस ऐे सिर को पेसा चकरा दिया कि बेसुय छो भरूपि पर गिर पढ़ा और बेवश होकर चिल्द्ा। उठा हाय बाली तू मुझ से सदेव के लिप फिछुड गया कुछ काल ता एस डी को लाइल मच/ता रहा फिर जब शगद पर दष्रे पड़ी तो उस को




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