आरोग्यांक | Aarogyaank
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
41.42 MB
कुल पष्ठ :
550
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कि [ रोगनिवारण-सूक्त ] था
हि दा की १३वां छुक्त हा ऋगवेदके देशम मण्डलका १३७वाँ स्क 'रोफनिवारण-सूक्त के नामसे
एथस मेन्नके ऋषि मरद्वाज द्वितीयके ही ततीयके डक बा वेकता चदमा एवं विश हैं। जब कि ऋग्वेद
पाप बियर के आर ? 7) ही गतिय चतु्कि आदि पशमके विश्वामितर पके जयदि तथा सम
थक ह जे देवता विधेदेवा हैं। ड्प सूक्तके जप-पाठसे रोगोंसे मुक्ति अर्थात आरोग्यत्ता प्राप्त होती है।
किये रोगमुक्तिके लिये ही देवोंसे प्रार्ना की है-. मी
उत्त . देवा. अवहित॑. देवा. उन्ययथा... पुनः।
.. ........ उ्ागशकुष देवा . देवा. जीवयथा... पुनः॥१॥
_ है देवों! हे देवी! आप नीचे गिरे हुएको फिर निश्चयपूर्वक ऊपर उठाएँ। हे देवो ! हे देवो! और पाप करनेवालेको
भी फिर जीवित करें, जीवित करें।
द्वाविमौ वाती. वात. आ.. सिन्धोरा.. परावत:।
दक्ष॑ ते अन्य आवातु व्यन्यों बातु यद्रप:॥२॥
ये दो चायु हैं। समुद्रसे आनेवाला पहला वायु है और दूर भूमिपरसे आनेवाला दूसरा वायु है। इनमेंसे एक
वायु तेरे पास बल ले आये और दूसरा वायु जो दोष है, उसे दूर करे।
आ बात चाहि भेषजं वि. वात वाहि. यद्रप: ।
त्व॑ हि... विश्वभेषज . देवानां .. दूत. ईयसे॥३॥
हे वायु! ओपधि यहाँ ले आ! हे वायु! जो दोष है, वह दूर कर। हे सम्पूर्ण ओषधियोंको साथ रखनेवाले
वायु! निःसंदेह तू देवोंका दूत-जैसा होकर चलता है, जाता है, प्रवाहित है।
ब्रायन्तामिमं देवास्त्रायन्तां मरुतां गणा: ।
ब्रायम्तां.. विश्वा. भूतानि.. थथायमरपा.. असतू॥ ४॥
हे देवो ! इस रोगीकी रक्षा करें। हे मरुतोंके समूहों ! रक्षा करें। सब प्राणी रक्षा करें। जिससे यह रोगी रोग-
दोपरहित हो जाये।
आ त्वागमं शंतातिभिरथो अरिट्टतातिभि: 1
दक्ष त.. उग्रमाभारिष॑ परा.. यक्ष्मं सुवामि ते॥ ५॥ की
आपके पास शान्ति फैलानेवाले तथा अविनाशी साधनोंके साथ आया हूँ। तेरे लिये प्रचण्ड बल भर दंता हूं।
तेरे रोगको दूर कर भगा देता हूं।
अय॑ पे. हस्तो भगवानयं. में. भगवत्तर:।
मे विश्वभेषजोडयं शिवाशिमर्शन: * ॥ ६ ॥ दि .
भाग्यशाली है। मेरा यह हाथ सब ओपधियाम युक्त है
अयं
मेरा यह हाथ भाग्यवान् है। मेरा यह हाथ अधिक भ
हे
और मेरा यह हाथ शुभ-स्पर्श देनेवाला है।
हस्ताभ्यां.. दशशाखाभ्यां.. जिह्ा . वाचः थूक ।
1 ं रं मसि॥। ४1
अनामपिलुभ्यां हस्ताभ्या _ ताभ्या त्वाभि ली
दस शाखावाले दोनों हाथोंके साथ वाणीकों आगे प्रेरणा करनेवाली मेरी जीभ है। उन नीराग करनवाल दोनों
हाथोंसे तुझे हम स्पर्श करते हैं। व
2 ऋग्वेद ' अयं॑ में हस्तो०' के स्थानपर यह दूसरा मन्त्र उल्लिखित है लि
जप इद्ठा 5. भेपजीरापों . अमीवचातती: ।. आपः सर्वेस्य भवन
कि हि ७ ७ 2 ही औओर्पीः ध ढ
जल ही निःसदेह ओषधि है। ज़ल रोग दूर करनवाला है। जल सब रोगोंकी आपधि है।
स्ताम्ते कृण्यनतु भेषजमू ॥
चह जल ते लिये ओपधि घनाथ।
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